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क्या है पिंडदान और तर्पण, यहां पढ़ें श्राद्ध करने की पूरी विधि

What Is Pind Daan And Tarpan : पौराणिक कथाओं में पिण्डदान एवं तर्पण आदि के लिए गयाजी को सर्वश्रेष्ठ एवं प्रभावशाली बताया गया है। पिंडदान व तर्पण का एक खास तरीका या विधि है, इसको यहां पढे़ं।

रतलामSep 11, 2019 / 02:06 pm

Ashish Pathak

What Is Pind Daan And Tarpan

What Is Pind Daan And Tarpan

रतलाम। What Is Pind Daan And Tarpan : जो श्रद्धा से किया जाए वो श्राद्ध होता है। आगामी 14 सितंबर 2019 से पितृपक्ष प्रारंभ होने के साथ ही गया (बिहार) स्थित फल्गु नदी के तट पर हजारों श्रद्धालु अपने पितरों की शांति के लिए पिंडदान एवं तर्पण कार्य शुरू कर देंगे। पूर्णिमा के दिन से शुरू होने वाली यह परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है। यूं तो वर्तमान में पिण्डदान एवं तर्पण आदि गया के अलावा हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर एवं बद्रीनाथ आदि जगहों पर भी सम्पन्न करवाये हैं, लेकिन पौराणिक कथाओं में पिण्डदान एवं तर्पण आदि के लिए गयाजी को सर्वश्रेष्ठ एवं प्रभावशाली बताया गया है। पिंडदान व तर्पण का एक खास तरीका या विधि है, इसको यहां पढे़ं। ये बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी एनके आनंद ने कही। वे भक्तों को श्राद्ध 2019 के साथ तर्पण की विधि के बारे में बता रहे थे।
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पूर्वज के श्राद्ध से मिलता है प्रत्यक्ष मोक्ष

Shraddha Of Ancestor Gives Direct Salvation : ज्योतिषी एनके आनंद ने बताया कि पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को ‘श्राद्धÓ कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को ‘तर्पण’ कहते हैं। सनातन धर्म और वैदिक मान्यताओं में पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का सहज और सरल मार्ग माना जाता है। पिण्डदान अथवा तर्पण के लिए बिहार स्थित गया जी को बेहतर बताया जाता है। श्राद्ध पखवाड़ा के प्रारंभ होते ही गया के फल्गु तट पर पिण्डदान करने वालों का तांता लगना शुरू हो जाता है। कहते हैं कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए यहीं पर गया में ही पिंडदान किया था। श्राद्ध पक्ष का महात्म्य उत्तर व उत्तर-पूर्व भारत में ज्यादा है। दक्षिण भारत एवं महाराष्ट्र के विभिन्न अंचलों में भी इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है।
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पिण्डदान की है देश में अलग-अलग विधियां

There Are Different Methods Of Pind Daan In The Country : ज्योतिषी एनके आनंद ने बताया कि महाभारत में वर्णित है कि फल्गु तीर्थ में स्नान करके जो मनुष्य श्राद्ध में श्रीहरि का दर्शन करता है, वह पितरों के सारे ऋणों से मुक्त हो जाता है। फल्गु तट पर श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज बस यही तीन मुख्य कार्य होते हैं। पितृपक्ष में कर्मकांड का विधि विधान अलग-अलग है। फल्गु तट पर परंपरानुसार पिण्डदान करने वाले श्रद्धालु एक, तीन, सात, पंद्रह और 16 दिन का कर्मकांड करते हैं।
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इस तरह होता है श्राद्धकर्म


This Is How Shraddha Krama Happens : पितरों के निमित्त सभी क्रियाएं जनेऊ दाएं कंधे पर रखकर और दक्षिनाभिमुख होकर की जाती है। तर्पण काले तिल मिश्रित जल से किया जाता है। श्राद्ध का भोजन, दूध, चावल, शक्कर और घी से बने पदार्थ का होता है। कुश के आसन पर बैठकर कुत्ता और कौवे के लिए भोजन रखें। इसके बाद पितरों का स्मरण करते हुए निम्न मंत्र का 3 बार जप करें –
ओम देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नम:।
स्वधायै स्वाहायै नित्य में भवन्तु ते ।

इसके बाद तीन -तीन आहुतियां दें

आग्नेय काव्यवाहनाय स्वाहा
सोमाय पितृ भते स्वाहा
वै वस्वताय स्वाहा

इतना करना भी संभव न हो तो जलपात्र में काला तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुहं करके तर्पण करें और ब्राह्मण को फल मिष्ठान्न खिलाकर दक्षिणा दें।
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इन बातों का श्राद्ध में रखें जरूर ध्यान


Keep In Mind These Things In Meditation: श्राद्ध के दिन एक समय भोजन, भूमि शयन व ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक है। इन दिनों में पान खाना, तेल लगाना , धूम्रपान आदि वर्जित है। इसके अतिरिक्त भोजन में उड़द, मसूर, चना, अरहर, गाजर, लौकी, बैगन, प्याज और लहसुन का निषेध है।
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पितरों के लिए गया ही जाना पसंद करते हैं


Like To Go To Gaya : एक समय गयाजी में अलग-अलग नाम की 360 से ज्यादा वेदियां मौजूद थीं, जहां देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आकर पिंडदान करवाते थे. लेकिन ज्यों-ज्यों गया के विकल्प के रूप में हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर एवं बद्रीनाथ के नाम उभरे, लोगों ने वहां भी जाना शुरू कर दिया। वर्तमान में कहा जाता है कि मात्र 48 वेदियां ही बची हुई हैं। इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। यहां की मुख्य वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी तट और अक्षयवट पर पिंडदान करना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बावजूद आज भी लोग अपने पितरों को पिण्डदान अथवा तर्पण के लिए गया जी ही आना पसंद करते हैं।
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