ऐसे आया मन में विचार
श्मशान भूमि में काम कर रहे कुमावत ने बताया कि वर्षों पूर्व यहां के नामचीन सरपंच मंगनीराम का निधन हो गया था। इनको दाह संस्कार के लिए इस श्मशान भूमि में लाया गया था। उस समय ये जगह उजाड़ थी और लोग यहां बैठना पसंद नहीं करते थे। सरपंच की चिता पूरी जली या नहीं। लोग देखने भी पास नहीं भटक रहे थे। तब मन में विचार आया कि क्यों न इस भूमि को हरा-भरा बनाया जाए। इसके बाद उन्होंने सबसे पहले पांच पौधे लगाए। उनकी देखभाल शुरू की। इसके अलावा आस-पास के क्षेत्र में बाड़ लगाई ताकि पौधों की सुरक्षा हो सके। देखते ही देखते ये पौधे आकार लेने लगे और मन में जबरदस्त उत्साह आया और पौधे लगाकर उनकी सेवा करना शुरू कर दिया। आज इसी श्मशान भूमि पर करीब 15 सौ पौधे हैं। जिनमें कुछ पेड़ का आकार ले चुके हैं और कुछ पौधे धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं।
काम सफल हुआ तो पंचायत ने बनाई दीवार
जैसे ही यहां हरियाली होने लगी ग्राम पंचायत ने भी काम की सराहना करते हुए श्मशान भूमि के चारों तरफ दीवार बनाई ताकि कोई भी इस भूमि पर अतिक्रमण ना कर सके। इस श्मशान भूमि के आस-पास अतिक्रमणों को भी हटवाया गया। कुमावत ने इस दीवार पर खुद के खर्चे से तारबंदी भी करवाई है। यहां पर अब हैंडपंप भी पंचायत प्रशासन की ओर से लगाया गया। जिससे पौधों में पानी देने का काम किया जाता है।
अब लगा रहे फलों के पौधे
मथुरालाल कुमावत अब श्मशान भूमि में फलो के पौधे लगाने में जुटे हुए हैं। उन्होंने यहां पर सहतूत, जामुन, आम के पौधे इस साल लगाए हैं। इनकी निरंतर देखभाल की जा रही है। समयानुसान पानी भी दिया जा रहा है। जानकारी के अनुसार कुमावत सुबह उठते ही छह बजे सीधे श्मशान भूमि पर आ जाते हैं और इसके बाद सरकारी सेवा में जुट जाते हैं। फिर शाम को वहां से काम समाप्त कर वापस श्मशान भूमि में आकर काम करना शुरू कर देते हैं।
अंतिम संस्कार में आने वाली राशि से बनवाए चार चबूतरे
मथुरालाल ने बताया कि अंतिम संस्कार के समय लोग यहां पर कुछ राशि डालकर जाते थे। इस राशि को एकत्रित करके रख लेता था और फिर जैसे ही राशि बढ़ी। उससे बड़ व अन्य पेड़ों के नीचे लोगों के बैठने के लिए चार चबूतरे भी बना डाले। आज जब भी लोग किसी के अंतिम संस्कार में आते हैं तो इस श्मशान भूमि को देख प्रशंसा करने से नहीं चूकते।