नारायणलाल के चचेरे भाई भंवर लाल गुर्जर ने बताया कि नारायण चार साल बाद रिटायर होने वाले थे। उनके एक बेटा और एक बेटी है, जिनमें बेटी हेमलता 18 साल की और बेटा मुकेश 16 साल का है। हेमलता ने बताया कि पापा ने यहां से रवाना होने के बाद शाम को घर पर फोन कर बताया था कि वे जम्मू पहुंच गए हैं। वहां लगातार बर्फबारी हो रही है, जिसके कारण जाम लग रहा है। उन्होंने कहा वे वापस जल्दी घर आएंगे। ये कहते हुए हेमलता भावुक हो गई।
गांव के युवाओं को करते थे प्रेरित
नारायण बचपन से ही पढा़ई में होशियार थे। उनमें शुरुआत से ही सेना में जाने का जज्बा था। इसी कारण उनका नाम आदर्श राउमावि स्कूल बिनोल में बोर्ड पर अंकित है। नारायण गांव ही नहीं आसपास के युवाओं के लिए हीरो थे। जब भी गांव में आते तो सेना के बारे में जानकारी देते हुए देश सेवा के लिए प्रेरित करते रहते थे। 38 साल के शहीद नारायण की छोटी सी जिन्दगी वाकई में इतिहास में दर्ज हो गई। मां-बाप के बगैर बचपन से संघर्ष में बढ़े हुए नारायणलाल की युवाओं को दी इस सीख को आज हर शख्स बताते हुए नहीं थक रहा हैं। बिनोल गांव और इस इलाके में उनकी प्रेरणा ने देश सेवा के जज्बे को और मजबूत बनाया है। गांव के भैरूलाल सेन ने बताया कि नारायणलाल छुट्टियों में जब भी गांव आते थे, तो सबसे पहले परिवारजनों से मिलकर घर से बाहर निकल जाते थे। युवाओं से उनका खासा लगाव था। मित्रों को फोन करके बुलाते थे। एक जगह एकत्र होने पर कसरत, स्वास्थ्य, शिक्षा, देशभक्ति और देशसेवा के ईर्द-गिर्द अपनी चर्चा को बांध लेते थे। सुरक्षा बलों में जाने के लिए हरदम अपने को तैयार रखने के लिए वह हमेशा प्रेरित करते थे। विकास दवे बताते हैं कि युवाओं को जल्दी उठने व फौजी की तरह जिन्दगी जीने को कहा करते थे।
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सेना से रिटायर्ड फूफा थे प्रेरणा के स्रोत
जब नारायण तीन साल के थे तब ही उनके पिता मांगीलाल का निधन हो गया था। इसके कारण उनका बचपन अपने नाना पेमा गुर्जर के यहां वासनी गांव में गुजरा था। नारायण स्कूल के समय से ही खेलकूद में हमेशा से आगे रहते थे। नारायण लाल का उनके फूफा छगनलाल गुर्जर से विशेष लगाव था। फूफा सेना से रिटायर्ड थे, जिससे वे उनके प्रेरणा स्रोत भी थे। उन्हीं के प्रेरणा से वे सेना में गए।
स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर करते थे कविता पाठ
नारायणलाल को राष्ट्रीय पर्व पर अपने गांव के स्कूल में कविता सुनाने का बड़ा शौक था। उनकी देशभक्ति से ओतप्रोत जोशभरी कविताएं सुनकर लोग भावुक हो उठते थे। उनकी पंक्तियां आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में ताजा हैं। देश को नेताजी चाहिए तो सुभाष जैसा…. नेताजी चाहिए तो भगत सिंह जैसा….. नेताजी चाहिए तो चन्द्रशेखर आजाद जैसा… कविता उनकी दिल के काफी करीब थी, जो उन्होंने खुद लिखी थी।