पढि़ए आदेश में क्या कहा था..
आदेश मेंं कहा गया है कि निर्दोष को झूठा फंसाने से बचाने के लिए आरोपोंं की प्रारंभिक जांच हो सकती है। यह जांच उप पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी करेगा। एेसे आरोपों में सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी केवल नियुक्तिकर्ता अधिकारी की लिखित अनुमति से की जा सकेगी। वहीं गैर सरकारी व्यक्तियों के मामले में पुलिस अधीक्षक की अनुमति लेना जरूरी होगा। अनुमति देने वाले अधिकारी को कारण बताना होगा। मजिस्ट्रेट इन कारणों की समीक्षा के बाद भी रिमांड तय करेगा। अग्रिम जमानत की भी अनुमति दे दी गई है।
इस बदलाव का देश भर में हुआ था विरोध
डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी कानून में यही गाइडलाइन दी थी। दलित संगठनों ने इससे इस कानून की क्षमता को कम करने के तौर पर देखा था। कहा गया कि सरकार ने कानून के बचाव में ठीक से पैरवी नहीं की। २ अप्रैल को देश भर में प्रदर्शन हुए। हिंसा में 10 से अधिक लोगों की जान गई थी।