राज्य को नहीं है अधिकार- हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Govt) को यह आधिकार नहीं है कि किसी भी जाति को अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में नामित करे। क्यों कि यह अधिकार संसद के पास है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 342 में संसद को इसका अधिकार दिया गया है।
यूपी सरकार ने जारी किया था आदेश वहीं यूपी सरकार (Uttar Pradesh Govt) का कहना है कि आठ जनवरी 2003 को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई थी। तत्पश्चात अपर मुख्य सचिव, समाज कल्याण अनुभाग द्वारा 15 जुलाई 2020 को एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत अधिसूचना में दिए गए 13 जिलों के लिए जातियों का नामकरण करते हुए गोंड जाति तथा उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजाति के रूप में उल्लेख किया गया है।
याचिकाकर्ता ने बताया आदेश को गलत याचिकाकर्ता नायक जन सेवा संस्थान का कहना है कि इस तरह के संदर्भ का अधिकार राज्य सरकार (Uttar Pradesh Govt) के पास नहीं होता है, इसलिए राज्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना में छेड़छाड़ या स्थानापन्न नहीं कर सकते हैं।
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने रखी सरकार की बात वहीं दूसरी ओर, अतिरिक्त महाधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि यह आदेश एक जनवरी 2003 की राजपत्र अधिसूचना के अनुरूप है और व्यक्ति द्वारा जाति प्रमाण पत्र को धोखाधड़ी से लेने के लिए अपनाए गए कदाचार के कारण आदेश जारी करने की आवश्यकता पड़ी।
कोर्ट ने रद्द किया आदेश सभी पक्षों को सुनने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Govt) के इस आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि, 15 जुलाई, 2020 का आदेश भारत सरकार की राजपत्र अधिसूचना के अनुसार जाति और जिले का संदर्भ दिखाता है। पैरा 3 के मध्य भाग में निर्दिष्ट जाति के अलावा, आक्षेपित आदेश के पैरा 3 के अंत में आगे गोंड जाति या इसके पर्यायवाची शब्द/उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में आने के लिए संदर्भित करता है। पूर्वोक्त अनुमेय नहीं है।