scriptरहस्य है कठफोड़वा से क्रिमेटोगास्टर चींटी का सामंजस्य | The secret is the harmony of the Chrymmetogaster ant with woodpecker | Patrika News
प्रतापगढ़

रहस्य है कठफोड़वा से क्रिमेटोगास्टर चींटी का सामंजस्य

प्रतापगढ़.कांठल के जंगल कई वर्षों से समृद्धशाली रहे है। इसके प्रमाण कई बार मिलते रहते है। ऐसा ही एक और प्रमाण हाल ही के वर्षों में मिला है। यहां के जंल में एक विचित्र और दुर्लभ चिंटी मिली है। जो पेड़ों पर अपना घोंसला बनाती है। हालांकि इस प्रजाति की चिंटियों के घोंसले उदयपुर संभाग में कुछ स्थानों पर भी देखे गए है। लेकिन यह चींटी पूरे भारतवर्ष में चुङ्क्षनदा इलाकों में ही पाई जाती है।

प्रतापगढ़May 15, 2021 / 07:33 am

Devishankar Suthar

रहस्य है कठफोड़वा से क्रिमेटोगास्टर चींटी का सामंजस्य

रहस्य है कठफोड़वा से क्रिमेटोगास्टर चींटी का सामंजस्य


-चींटी के घोंसले में देता है अंडे
-प्रतापगढ़ के जंगलों में भी देखे गए घोंसले
प्रतापगढ़.
कांठल के जंगल कई वर्षों से समृद्धशाली रहे है। इसके प्रमाण कई बार मिलते रहते है। ऐसा ही एक और प्रमाण हाल ही के वर्षों में मिला है। यहां के जंल में एक विचित्र और दुर्लभ चिंटी मिली है। जो पेड़ों पर अपना घोंसला बनाती है। हालांकि इस प्रजाति की चिंटियों के घोंसले उदयपुर संभाग में कुछ स्थानों पर भी देखे गए है। लेकिन यह चींटी पूरे भारतवर्ष में चुङ्क्षनदा इलाकों में ही पाई जाती है। इस चींटी का अंग्रेजी नाम ब्लैक ट्री आंट, पेगोडा आंट है। जबकि इसका वैज्ञानिक नाम क्रिमेटोगास्टर, एबेरांस है।
क्रिमेटोगास्टर का जंगल की साथी एवं जैविक गंदगी के निस्तारण एवं कठफोड़वा (र्यूफस वुडपेकर) से सामंजस्य होता है। सिंबायोटिक संबंध प्रकृति का दिलचस्प रहस्य है। जबकि इस चींटी और कठफोड़़वा में शत्रुता है। कठफोड़वा इस घोंसले में चींटियों और इल्लियों को खा जाता है। जबकि कठफोड़वा इन्हीं घोंसलों में अपना प्रजनन करता है। जब तक इसके बच्चे बड़े नहीं हो जाते, तब तक दूसरे कठफोड़वा को पास नहीं आने देता है। वहीं चींटी भी चूजों को नुकसान नहीं पहुंचाती है। इनकी गंदगी को भी यह साफ करती है। चींटियां इनको नुकसान नहीं पहुंचाती है, यह आज तक रहस्य बना हुआ है।
देवगढ़ के निकट शाहजी का पठार जंगल में क्रिमेटोगास्टर प्रजाति की चींटी के घोंसले मिले हैं। इस पर पर्यावरणविद् और वन विभाग के कर्मचारी मौके पर पहुंचे और इसकी पुष्टि की है। इन चींटियों के घोंसले दो फीट तक भी होते है। पहली बार दिखे इन घोंसलों और चींटियों की पहचान के लिए पर्यावरणविद् देवेन्द्र मिस्त्री ने इनके मृत शरीर और घोंसलें के फोटो को पंजाब में पटियाला यूनिवर्सिटी को भेजे गए। जहां चींटियों पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक(मर्मेकोलोजिस्ट) एवं व्याख्याता डॉ. हीमेंदर भारती ने जांच की। जिसमें इनकी पहचान क्रिमेटोगास्टर के रूप में की गई। जो भारत में काफी कम स्थानों पर पाई जाती है।
यह होती है क्रिमेटोगास्टर चींटी
यह चींटी चार-पांच पांच एमएम लंबाई की होती है। इनका निचला पेट दिल के आकार का होता है। लैटिन भाषा में इसे गेस्टर बोला जाता है। इसलिए इसका नाम क्रिमेटोगास्टर हुआ। यह अपना आवास पेड़ के ऊपर फुटबॉल नुमा बनाती है। जो मिट्टी, तिनके, छाल, घास आदि से बनाते है। इसमें यह अपने अंडे और इल्लियां रखती है। इसका भोजन पक्षियों के अंडे, कीड़े आदि होता है। खतरा होने से अपने दिल के आकार के पेट को ऊपर उठाकर डंक निकालकर कंपन्न कर संकेतों का संपे्रषण करती है। चीडिय़ों, सरीसृप आदि को डंक चूभोकर भगाती और दूर करती है।
मेवाड़ में यहां देखे गए घोंसले
इस प्रकार की चीटियां देश के कुछ इलाकों में ही पाई जाती है जिसकी मध्य भारत, उत्तर-पूर्व, दक्षिण भारत के घने जंगल में पाई जाती है। वहीं गत वर्षों में उदयपुर संभाग में इस चींटी के घोंसले आधा दर्जन इलाकों में देखे गए है। जिसमें प्रतापगढ़ के सीतामाता अभयारण्य, देगवढ़ के शाहजी का पठार, रणथंभौर, चित्तौडग़ढ़ के डूंगला, सलूंबर के पास जंगल में कुछ पेड़ों पर इसके घोंसले देखे गए है।

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