35 साल तक पीलीभीत लोकसभा सीट पर रहा गांधी परिवार का दबदबा
अगर हम बात करें पीलीभीत लोकसभा सीट की तो यहां का इतिहास बड़ा ही शानदार रहा है। गांधी परिवार की दूसरी बहू मेनका गांधी साल 1996 में यहां से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा गई थीं। इसके बाद 1998 और 1999 में निर्दलीय चुनाव जीतकर अपना दबदबा कायम रखा। 2004 में फिर एक बार मेनका गांधी बीजेपी के टिकट से यहां पर चुनाव लड़ी और फिर समाजवादी पार्टी के सत्यपाल गंगवार को हराकर लोकसभा पहुंची। इसके बाद साल 2009 के आम चुनाव में मेनका गांधी की जगह उनके बेटे वरुण गांधी बीजेपी के टिकट से चुनाव जीतकर यहीं से सांसद बने। 2014 में मेनका गांधी एक बार फिर बीजेपी के टिकट पर यहां से लोकसभा पहुंची और फिर 2019 में दोबारा वरुण गांधी इस सीट से चुनकर लोकसभा पहुंचे। यह भी पढ़ेंः
तीसरी बार पीएम बनेंगे नरेंद्र मोदी, कोयंबटूर से ‘वोट फॉर मोदी’ की अलख जगाने बुलेट से आगरा पहुंचीं साध्वी कहा जाता है की उनके बगावती तेवर की वजह से इस बार बीजेपी ने उनका टिकट काटकर जितिन प्रसाद को चुनावी मैदान में उतारा है। जिस सीट पर लगातार पिछले 35 सालों से गांधी परिवार का दबदबा रहा है। उस सीट पर इस बार सिर्फ यूपी ही नहीं, बल्कि पूरे देश की नजर है। यहां पहले ही चरण में चुनाव होना है और अब तक दो बार सीएम योगी और एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अखिलेश यादव और मायावती यहां जनसभा कर चुके हैं।
विपक्षी पार्टियों ने पीलीभीत लोकसभा सीट पर गड़ाई नजर
इस लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभाओं बहेड़ी , पीलीभीत , बरखेड़ा , पूरनपुर और बीसलपुर में चार पर BJP का कब्जा है। फिर भी जातिगत समीकरण को देखा जाए तो PDA का गठन कर चुनाव में उतरने वाली समाजवादी पार्टी इस लोकसभा सीट पर नजर गड़ाए बैठी है। हालांकि जितिन प्रसाद के परिवार का इस जिले के लोगों से पुराना रिश्ता है। जितिन प्रसाद पिता का जुड़ाव पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर, सीतापुर जिले के लोगों से विशेषकर रहा है। यही कारण है कि बीजेपी ने तमाम जातिगत समीकरणों को नकारते हुए यहां से जितिन प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा विपक्ष इस बात से उत्साहित है कि गांधी परिवार का गढ़ मानी जाने वाली सीअ से इस बार भाजपा ने प्रत्याशी बदला है। इसलिए विपक्ष इस सीट पर कब्जा जमाने की पूरी कोशिश कर रहा है।
पीलीभीत में ये हैं जातिगत आंकड़े
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, पीलीभीत लोकसभा सीट पर पांच लाख मुस्लिम मतदाता हैं। इसके अलावा 4 लाख 35 हजार लोधी किसान, दो लाख 15 हजार कुर्मी, 70 हजार मौर्य, 70 हजार पासी, 65 हजार जाटव मतदाता हैं। जबकि 50 हजार बंगाली, 50 हजार ब्राह्मण, 45 हजार सिख, 40 हजार कश्यप, भुर्जी 28 हजार, बढ़ई 26 हजार, धोबी 26 हजार, ठाकुर 22 हजार, नाई 19 हजार और 18 हजार यादव मतदाता हैं। इसके अलावा अन्य जातियों की संख्या इससे कम है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि पीलीभीत लोकसभा सीट पर मुस्लिम, लोधी और कुर्मी मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं। इसी के चलते यहां विपक्षी पार्टियां पूरी ताकत झोंक रही हैं। अगर विपक्ष मुस्लिम, कुर्मी और लोध मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होता है तो यह सीट भाजपा के खाते से छिन सकती है। अब सारा दारोमदार बीजेपी संगठन और पीलीभीत की चारों विधानसभा के विधायकों के ऊपर है।
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श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद पर हिंदू पक्ष को ‘सुप्रीम’ राहत, सर्वोच्च अदालत ने नहीं मानी मुस्लिम पक्ष की बात फिलहाल इस सीट पर खुद प्रधानमंत्री आकर जनसभा कर चुके हैं। इसके अलावा सीएम योगी ने दो-दो बार पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र में रैली की है। चर्चा यह भी है कि भाजपा के ही एक विधायक पीलीभीत से लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक थे, लेकिन भाजपा ने उनकी जगह जितिन प्रसाद को यहां से प्रत्याशी बना दिया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सीट किसके खाते में जाती है। इसके लिए हमें 4 जून तक इंतजार करना पड़ेगा।