यह आंकड़ा जरूर है कि देश में मौजूद 7089 मूल्यांकन इकाइयों में से 14 प्रतिशत (1006) इकाइयों में पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है, लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है और इसे कैसे रोका जाना चाहिए, इसके लिए सरकार के पास कोई व्यवस्था नहीं है। देश के कई राज्यों में वर्षा से जितना भूजल रिचार्ज हर साल होता है, उससे ज्यादा मात्रा में पानी बाहर निकाला जा रहा है। अन्य प्रदेशों में भी इसका औसत 60 प्रतिशत से ज्यादा आ रहा है।
औद्योगिक इकाइयों में पानी की बहुत ज्यादा खपत होती है। विकास के लिए उद्योगों को बढ़ावा देने और नए-नए निवेश को आमंत्रित करना जरूरी है, उनकी जरूरतें पूरी करना भी सरकार का दायित्व है, लेकिन वहां संतुलन के साथ पानी का उपयोग सुनिश्चित करना भी उसी की जिम्मेदारी है। इसी तरह कृषि क्षेत्र में पानी का जरूरत से ज्यादा उपयोग रोकना भी सरकार की जिम्मेदारी है। अधिक मात्रा में पानी से कृषि व भूमि को होने वाले नुकसान के प्रति आगाह करते हुए किसानों को इजरायल जैसी बूंद-बूंद सिंचाई जैसी पद्धतियों का प्रचलन बढ़ाने केे लिए प्रशिक्षित करना चाहिए। कॉलोनियों के विकास और घर-घर में नलकूप खोदने की प्रवृत्ति पर भी उसे नजर रखनी चाहिए। कुछ दायित्वबोध जनता को भी होना चाहिए, क्योंकि रिपोर्ट का एक पहलू यह भी है कि आम लोग हर रोज लगभग 30 प्रतिशत पानी बर्बाद कर देते हैं। जनता खुद भी आदत बदले और समझे कि पानी के साथ खिलवाड़ जीवन से खिलवाड़ है।