एसटीएफ ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया वे भी सीधे-सीधे टोल प्लाजा से ही जुड़े हैं। बिना फास्ट टैग के टोल से गुजरने वाले वाहनों से दोगना टोल वसूलने का प्रावधान है। इस रकम का 50 फीसदी टोल राशि वसूलने वाली निजी कंपनी या ठेकेदार को मिलता है। शातिर दिमाग की उपज देखिए कि जिस सॉफ्टवेयर से यह टोल वसूला जाता था, उसमें पूरा पैसा निजी कंपनी या ठेकेदार हजम कर रहे थे। खास बात यह भी कि इस सॉफ्टवेयर से निकाली गई टोल टैक्स की पर्ची हूबहू एनएचएआई जैसी ही होती थी। एनएएचआई को शक न हो इसलिए बिना फास्ट टैग के गुजरने वाले वाहनों में से केवल 5 फीसदी को ही एनएएचआई सॉफ्टवेयर पर बुक किया जाता। आइटी और अन्य कर्मियों के बीच इस राशि को बांटा जाता था। इस घोटाले के मुख्य आरोपी ने 42 टोल प्लाजा पर यह सॉफ्टवेयर आखिर कैसे इंस्टॉल किया होगा? जिन 42 टोल प्लाजा पर सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया उसके सॉफ्टवेयर से प्रतिदिन एक टोल प्लाजा पर 45 हजार रुपए का गबन होता है। इस प्रकार दो साल में इस गैंग ने अनुमानित 64.80 अरब रुपए से अधिक का गबन किया है। अभी देशभर के 158 टोल प्लाजों की जांच बाकी है। मोटे अनुमान के अनुसार अब यह घोटाला 200 अरब से ऊपर का हो सकता है।
सिस्टम में सेंध लगाकर करोड़ों-अरबों की ठगी से सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वालों ने यह दुस्साहस दिखा दिया है कि सरकारी संस्थानों के बड़े-बड़े आइटी एक्सपट्र्स की सतत निगरानी को भी वे धता बता सकते हैं। साइबर ठग हो या सरकारी कोष में पहुंचने वाली रकम को अपने खाते में पहुंचाने वाले, सब एक तरह से सिस्टम को चुनौती देते ही नजर आते हैं। बड़ी वजह यह भी है कि सतर्कता उपायों को मजबूत करने के बजाए ऐसी घटनाएं सामने आने पर ही समाधान का रास्ता निकालना शुरू होता है। सतर्कता कम और लापरवाही ज्यादा हो तो इस तरह के घोटालों को रोकना मुश्किल होने लगेगा।