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Patrika Opinion: बढ़ती महंगाई पर गंभीर चिंतन का समय

महंगाई बढ़ने में अंतरराष्ट्रीय कारकों की भी भूमिका है। कोरोना के बाद दुनिया के विकसित देशों में भी महंगाई की मार देखी जा रही है। अमरीका में 6.4 फीसदी, यूरोपीय यूनियन में 8.5 फीसदी और ब्रिटेन में 10.5 फीसदी की महंगाई दर दर्ज की गई है। जाहिर है कि इन देशों से होने वाले आयात का भारत पर असर पड़ रहा है।

Feb 16, 2023 / 10:50 pm

Patrika Desk

Patrika Opinion: बढ़ती महंगाई पर गंभीर चिंतन का समय

Patrika Opinion: बढ़ती महंगाई पर गंभीर चिंतन का समय

महामारी की मार से तेजी से बाहर आ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लगातार बढ़ती महंगाई एक कमजोरी साबित हो रही है। तीन महीनों तक कुछ नरमी दिखाने के बाद जनवरी में महंगाई के आंकड़े फिर चढ़े। रिजर्व बैंक लगातार महंगाई को नियंत्रित करने के प्रयास कर रहा है। हालांकि ब्याज दरों में बढ़ोतरी महंगाई कम करने का ही एक उपक्रम है, पर अभी अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या रिजर्व बैंक की कोशिशें पर्याप्त हैं। बीते सोमवार को जनवरी में खुदरा महंगाई दर 6.52 फीसदी दर्ज की गई। खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ी हैं, जो आम लोगों की परेशानी का कारण है। खास तौर पर गेहूं, चावल और सब्जियां उम्मीद से ज्यादा महंगी हुई हैं। अनाज की कीमतों में वृद्धि का सीधा असर आम लोगों पर पड़ता है। पिछले पांच महीनों में अनाज की कीमतें लगातार बढ़ी हैं। पिछले वर्ष की तुलना में बीती जनवरी में इसमें 16 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। जून 2013 के बाद यह सबसे बड़ी उछाल है।
महंगाई बढ़ने में अंतरराष्ट्रीय कारकों की भी भूमिका है। कोरोना के बाद दुनिया के विकसित देशों में भी महंगाई की मार देखी जा रही है। अमरीका में 6.4 फीसदी, यूरोपीय यूनियन में 8.5 फीसदी और ब्रिटेन में 10.5 फीसदी की महंगाई दर दर्ज की गई है। जाहिर है कि इन देशों से होने वाले आयात का भारत पर असर पड़ रहा है। करीब तीन साल के बाद चीन अपना बाजार खोल रहा है, इसलिए कीमतों में और बढ़ोतरी की आशंका जताई जा रही है। इसलिए उम्मीद है कि रिजर्व बैंक इस मसले पर गंभीरता से विचार करेगा और समय रहते अन्य जरूरी कदम भी उठाएगा।
दरअसल, महंगाई दर को नियंत्रित रखते हुए विकास दर बढ़ाना हमेशा से चुनौती रही है। महंगाई पर नियंत्रण के लिए जो उपाय किए जाते हैं, उनका विकास योजनाओं पर विपरीत असर पड़ता है। यूपीए सरकार के समय भी ऐसी ही चुनौती थी। अब वही चुनौती वर्तमान एनडीए सरकार के समक्ष भी दिख रही है। अगले साल होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर सरकार विकास योजनाओं को गति देने का प्रयास कर रही है और इस मामले में कोई समझौता करने के मूड में भी नहीं है। मोदी सरकार वही गलती नहीं दोहराना चाहती जिसके लिए उसने कभी मनमोहन सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। ऐसे में रिजर्व बैंक के लिए संतुलन बनाए रखना बड़ी चुनौती है। रिजर्व बैंक को ऐसा रास्ता निकालना ही होगा जिससे कि महंगाई से आम लोग ज्यादा त्रस्त नहीं हों और विकास की रफ्तार भी प्रभावित न हो।

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