Patrika Opinion : शुद्ध पानी के लिए नियमों की सख्ती से पालना जरूरी
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने पैकेज्ड मिनरल वाटर (बोतलबंद पानी) को ‘हाई-रिस्क फूड कैटेगरी’ में वर्गीकृत किया है। यह निर्णय स्वास्थ्य और उपभोक्ता अधिकारों के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण पहल है। यह कदम न केवल उपभोक्ताओं को सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करेगा, बल्कि पानी की गुणवत्ता और इसके मानकों को लेकर बढ़ती चिंताओं को […]
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने पैकेज्ड मिनरल वाटर (बोतलबंद पानी) को ‘हाई-रिस्क फूड कैटेगरी’ में वर्गीकृत किया है। यह निर्णय स्वास्थ्य और उपभोक्ता अधिकारों के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण पहल है। यह कदम न केवल उपभोक्ताओं को सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करेगा, बल्कि पानी की गुणवत्ता और इसके मानकों को लेकर बढ़ती चिंताओं को भी दूर करने में मददगार साबित होगा। भारत में पैकेज्ड मिनरल वाटर बेचने की शुरुआत हालांकि 1960 में हो गई थी, लेकिन 90 के दशक में यह व्यवसाय परवान पर चढऩे लगा। आज तो शहरों से लेकर गांव और कस्बों तक बोतलबंद पानी पहुंच गया है। बोतलबंद पानी के कारोबार का बाजार वर्ष 2022 में लगभग 20,000 करोड़ रुपए का था। यह उद्योग हर साल लगभग 15-20 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। अगले वर्ष तक यह बाजार 35,000 करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है।
बोतलबंद पानी को हाई रिस्क फूड कैटेगिरी में वर्गीकृत करने का निर्णय सही हो सकता है, लेकिन सबसे अहम सवाल यही है कि करीब छह दशक से चल रहे इस कारोबार के इस श्रेणी तक पहुंचने की नौबत क्यों आई। असल में प्राकृतिक जलस्रोत कुएं, बावड़ी धीरे-धीरे सूखते गए। नदियां प्रदूषित होने लगीं। शहरी क्षेत्रों में भूजल का अत्यधिक दोहन होने लगा। बरसात के पानी को सहजने की व्यवस्था न होने से भूगर्भ का पानी रिचार्ज नहीं हो रहा और पेयजल का संकट गहराता गया। इसी का फायदा उठाकर सैकड़ों कंपनियां बोतलबंद पानी के कारोबार में उतर गईं। आज कई ऐसी इकाइयां हैं जो मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है। निगरानी के अभाव में सादे पानी तक को बोतल में भरकर बेचा जा रहा है। बोतल निर्माण लिए घटिया प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है। दोनों तरह की लापरवाही जानलेवा साबित हो रही है। ऐसे में बोतलबंद पानी के बड़े ब्रांड्स पर ही नहीं, बल्कि छोटे और स्थानीय उत्पादकों पर भी निगरानी रखनी होगी। मानकों के सख्ती से पालन करवाने से उत्पादन लागत बढ़ सकती है। ऐसे में इसे संतुलित करने के लिए सरकार रियायतें और सब्सिडी देने पर विचार कर सकती है। सरकार को खास तौर से ग्रामीण इलाकों में शुद्ध पानी की उपलब्धता को प्राथमिकता देनी चाहिए। प्राकृतिक जल संसाधनों को सहेजने की जरूरत है। कंपनियों को भी रीसाइक्लिंग और वैकल्पिक पैकेजिंग विकल्प अपनाने चाहिए। इस निर्णय के प्रभावों को संतुलित करने व सुरक्षित व सुलभ जल की उपलब्धता के लिए सरकार और कंपनियों को मिलकर काम करना होगा।
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