बच्चों को सोशल मीडिया से सुरक्षित रखने की कवायद
आर.के. विज, सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशकहाल ही सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रकरण में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करने को गंभीर अपराध की संज्ञा देते हुए कई स्पष्टीकरण दिए हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि निचली अदालतें ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ के स्थान पर ‘चाइल्ड एब्यूज एंड एक्सप्लोइटेटिव मटेरियल’ शब्दावली का प्रयोग करें। सरकार को भी इस अनुसार […]
आर.के. विज, सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक
हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रकरण में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करने को गंभीर अपराध की संज्ञा देते हुए कई स्पष्टीकरण दिए हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि निचली अदालतें ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ के स्थान पर ‘चाइल्ड एब्यूज एंड एक्सप्लोइटेटिव मटेरियल’ शब्दावली का प्रयोग करें। सरकार को भी इस अनुसार कानून में संशोधन करने की सलाह कोर्ट ने दी है। निश्चित ही बच्चों की सोशल मीडिया पर मौजूदगी कम होने पर उन्हें होने वाले कई नुकसानों से बचाया जा सकेगा। बच्चों को ऑनलाइन नुकसान से सुरक्षा देने के उद्देश्य से अमरीका ने 1996 में ‘कम्युनिकेशन डीसेंसी अधिनियम’ बनाया था, परंतु अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय ने उसे संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार देते हुए निरस्त कर दिया। इसके बाद 1998 में 13 वर्ष से कम बच्चों के लिए वेब सर्विसेज और ऑनलाइन सर्विसेज पर कई निजता संबंधी शर्तें लगाते हुए ‘चिल्ड्रंस ऑनलाइन प्रोटेक्शन अधिनियम’ लाया गया, परंतु कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया। इसके बाद वर्ष 2000 में नया कानून ‘चिल्ड्रंस इंटरनेट प्रोटेक्शन एक्ट’ बनाया गया जिसमें स्कूल और पुस्तकालयों में ऑनलाइन सर्विसेज हेतु आवश्यक फिल्टर उपयोग करने के प्रावधान किए गए ताकि बच्चे आपत्तिजनक सामग्रियां न देख पाए। यह भी शर्त रखी गई कि जो स्कूल और पुस्तकालय ऑनलाइन सर्विसेज हेतु आवश्यक फिल्टर का उपयोग नहीं करेंगे, उन्हें फेडरल फंड नहीं दिया जाएगा। इस प्रकार अमरीका बच्चों को ऑनलाइन नुकसान से बचाने के लिए आंशिक रूप से कुछ प्रावधान कर सका।
कोई प्रतिबंध न होने से बच्चे आजकल अपना काफी समय सोशल मीडिया पर गुजारते हैं। इससे न केवल इससे उनका मानसिक विकास प्रभावित होता है, बल्कि वे अपना काफी समय भी नष्ट करते हैं। कुछ समय पहले फ्लोरिडा में एक बच्चे ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के एक टूल (कैरेक्टर.एआई) के उपयोग करने की आदत के चलते आत्महत्या कर ली थी। बच्चे की मां ने गूगल के खिलाफ कोर्ट में बच्चों को बहकाने (मिस प्रेजेंटेशन) संबंधी केस दर्ज किया है। हाल ही ऑस्ट्रेलिया के निचले सदन ने 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स की पहुंच प्रतिबंधित करने हेतु एक नया कानून पारित किया है। इसके तहत 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट न खोल पाएं, इसकी जिम्मेदारी केवल सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स की होगी, न कि स्वयं बच्चे या उनके माता-पिता की। नए कानून के उल्लंघन करने पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर का जुर्माना लगाया जा सकेगा। संभवत: ऑस्ट्रेलिया पहला देश है जिसके द्वारा ऐसा कड़ा कानून बनाया जा रहा है। हालांकि भारत में ऑस्ट्रेलिया जैसा कानून बनाने का प्रस्ताव सामने नहीं आया है, केंद्रीय मंत्री द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स के विरुद्ध आपत्तिजनक सामग्री को प्रसारित होने से रोकने के लिए कानूनी प्रावधान कड़े करने की बात लगातार कही जा रही है।
वर्तमान सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम में ‘सेफ हार्बर’ सिद्धांत के अंतर्गत थर्ड पार्टी द्वारा प्रसारित की जा रही सामग्री के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स को ‘ड्यू डिलिजेंस’ के अंतर्गत गलत जानकारी एवं आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करने से रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए, परंतु क्या-क्या कदम उठाए जाएं, इस पर अधिनियम एवं 2021 में जारी किए गए नियम मौन हैं। कई राज्यों द्वारा स्कूल में मोबाइल फोन का उपयोग प्रतिबंधित किया गया है, परंतु केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है। इसलिए ऑस्ट्रेलिया की तरह भारत को भी बच्चों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से बचने के लिए एक उपयुक्त कानून बनाने पर विचार करना उचित होगा।
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