इसी तरह का खतरा इस साल मई में पैदा हुआ था, जब चीन का एक रॉकेट अंतरिक्ष में बेकाबू हो गया था। गनीमत रही कि इसका मलबा मालदीव के पास हिंद महासगर में गिरने से बड़ा नुकसान नहीं हुआ। तीन साल पहले 8.5 टन वजनी चीनी अंतरिक्ष स्टेशन तियांगोंग-1 दक्षिण प्रशांत महासागर में गिरकर नष्ट हो गया था। रूस के जासूसी उपग्रह को लेकर यह आशंका भी जताई जा रही है कि अगर यह पृथ्वी पर नहीं गिरा तो इसका मलबा कई हफ्ते पृथ्वी की निचली कक्षा में चक्कर काट सकता है।
अंतरिक्ष में कचरा पहले से ही खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। अमरीका की नेशनल रिसर्च काउंसिल ने अगस्त में जारी एक रिपोर्ट में बताया था कि बेकार हुए कई बूस्टर और पुराने उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में चक्कर काट रहे हैं। अंतरिक्ष में उल्का पिंडों और निष्क्रिय उपग्रहों के मलबे के 1.70 करोड़ से ज्यादा टुकड़े मौजूद हैं। ये 28,164 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर काटते हैं। इनसे अंतरिक्ष यान और दूसरे उपयोगी उपग्रहों को खतरा पैदा हो सकता है। पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को भी इनसे खतरा है।
अमरीकी नेशनल रिसर्च काउंसिल के शोधकर्ता डॉनल्ड कैसलर का कहना है कि लगातार बढ़ते कचरे से हमने अंतरिक्ष के पर्यावरण पर नियंत्रण खो दिया है। इसका असर अंतरिक्ष ही नहीं, पृथ्वी पर भी पड़ेगा। अमरीका की यूटा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कुछ समय पहले कहा था कि अंतरिक्ष में बढ़ रहे कचरे के कारण पृथ्वी के चारों तरफ शनि ग्रह जैसे छल्ले का निर्माण करना पड़ सकता है।
अंतरिक्ष में कचरे को सीमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम बनाए जाने चाहिए। उपग्रहों और रॉकेट की डिजाइन-सामग्री ऐसी होनी चाहिए कि वायुमंडल में पुन:प्रवेश पर ये स्वत: जलकर नष्ट हो जाएं। पृथ्वी के लिए इनका मलबा इस लिहाज से भी खतरनाक है कि कोई बड़ा टुकड़ा पूरी तरह नष्ट हुए बगैर वायुमंडल में प्रवेश कर विनाशक प्रभाव पैदा कर सकता है।