Opinion : फिर गंभीर सवालों से घिरी मुंबई की कानून-व्यवस्था
अभिनेता सैफ अली खान पर हमले के मामले ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हैरानी की बात है कि सबसे सुरक्षित माने जाने वाले बांद्रा इलाके में एक सिरफिरा बेखौफ होकर सैफ अली के आवास के अंदर तक जा पहुंचा और उन पर चाकू से हमले के बाद भाग निकला। बांद्रा में फिल्मों के अलावा उद्योग जगत की कई बड़ी हस्तियों के आवास हैं। हस्तियां ही अपने आवास में सुरक्षित नहीं हैं तो आम लोगों की सुरक्षा की क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि कार्य कुशलता के मामले में मुंबई पुलिस देश में सबसे आगे है, लेकिन बांद्रा जैसे इलाके में चौंकाने वाली घटनाएं उसकी वर्दी पर धब्बे डाल रही हैं। इसी इलाके में पिछले साल पहले अभिनेता सलमान खान के आवास के बाहर फायरिंग हुई और बाद में एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मुंबई में सड़कों पर शूटआउट, गैंगवार के साथ फिल्मी हस्तियों, कारोबारियों और बिल्डरों को रंगदारी के लिए धमकियों का सिलसिला नया नहीं है। अंडरवल्र्ड का नब्बे के दशक जैसा खौफ भले ही अब मायानगरी में नहीं है, लेकिन अपराधों के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं।
मुंबई पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल मुंबई में 5,827 आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जबकि 2023 में यह संख्या 5,410 थी। यानी 2024 में हर महीने 530 अपराध हुए। इनमें हत्याओं, चोरी, महिलाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार के मामले शामिल हैं। एनसीआरबी के मुताबिक चोरी के मामलों में मुंबई देशभर में दिल्ली के बाद दूसरे नंबर पर है। सैफ अली पर हमला करने वाला भी चोरी के इरादे से उनके आवास में घुसा था। आरोपी को पकडऩेे के लिए मुंबई पुलिस तीन दिन तक भागदौड़ करती रही। छत्तीसगढ़ के दुर्ग स्टेशन से एक संदिग्ध को जिस तरह पकड़ा गया, उससे पुलिस की कम फजीहत नहीं हुई। अब सफाई दी जा रही है कि इस संदिग्ध का हुलिया आरोपी से मिलता-जुलता लगा था। असली आरोपी तक पहुंचने के बाद इस संदिग्ध को छोड़ दिया गया। पूछा जाना चाहिए कि किसी बेकसूर नागरिक को इस तरह पकड़कर संदिग्ध के तौर पर क्यों पेश किया गया? अगर असली आरोपी नहीं पकड़ा जाता तो संदिग्ध को पुलिस की ‘थर्ड डिग्री’ से भी गुजरना पड़ता। जाहिर है, फरार आरोपियों का पता लगाने के लिए पुलिस जो तकनीक अपना रही है, उसमें कई खामियां हैं। तकनीक के साथ पुलिस की छानबीन के तौर-तरीकों में आमूलचूल बदलाव जरूरी है।
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