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हिंडनबर्ग के बंद होने से उठते सवाल

अपनी रिपोर्ट से दुनिया भर में सनसनी मचाने वाली शॉर्ट सेलिंग कंपनी हिंडनबर्ग की रिसर्च बंद करने की घोषणा ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कंपनी के फाउंडर नैट एंडरसन ने यह कह कर भले ही पल्ला झाड़ लिया हो कि मकसद पूरा होने के बाद यह फैसला किया गया है, लेकिन यह सवाल […]

जयपुरJan 17, 2025 / 09:18 pm

arun Kumar

अपनी रिपोर्ट से दुनिया भर में सनसनी मचाने वाली शॉर्ट सेलिंग कंपनी हिंडनबर्ग की रिसर्च बंद करने की घोषणा ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कंपनी के फाउंडर नैट एंडरसन ने यह कह कर भले ही पल्ला झाड़ लिया हो कि मकसद पूरा होने के बाद यह फैसला किया गया है, लेकिन यह सवाल सबसे अहम है कि आखिर यह फैसला ऐसे वक्त क्यों लिया गया जब अमरीका में चंद दिनों के बाद सत्ता में बदलाव होने जा रहा है। साथ ही सवाल यह भी कि क्या कोई भी व्यक्ति या कंपनी अपनी रिपोर्टों से आर्थिक हलचल लाने के बाद अचानक अपने कामकाज को इस तरह से बंद कर सकती है?
अमरीका और कई देशों की अदालतों में सैकड़ों मुकदमे एंडरसन पर चल रहे हैं। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट में भारतीय कारोबारी गौतम अडाणी के साथ कारोबारी संबंधों के आरोप पर हिंडनबर्ग को कारण बताओ नोटिस भेजा था। इसका जवाब पांच माह बाद भी हिंडनबर्ग की तरफ से नहीं आया है। दुनिया के कई अन्य नियामकों ने भी एंडरसन पर अरबों रुपए का मानहानि का दावा कर रखा है। आरोप यह भी है कि एंडरसन ने कई रिपोर्टों को बेचकर अरबों रुपयों की कमाई भी की है। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि क्या एंडरसन को डर है कि उनके खिलाफ शिकायतों के अंबार की अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जांच करा सकते हैं। शायद इसलिए भी कि इस जांच में ऐसे कुछ लोगों के नाम आ सकते हैं जिससे अमरीका में सियासी हलचल बढ़ सकती है। वैसे भी अमरीका का न्याय विभाग और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन कई मामलों की जांच कर रहा है। सवाल यह भी है कि केंद्र सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट और सेबी तक को हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मार्फत घेरने की कोशिश क्यों की गई? क्यों लाखों भारतीयों को अरबों रुपए की चपत लगाने की कोशिश की गई? केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा का आरोप है कि पीएम नरेंद्र मोदी व अदाणी ग्रुप पर हमले केवल लाभ के लिए नहीं थे बल्कि भारत में अस्थिरता पैदा करने की साजिश जैसा ही कुछ था। बांग्लादेश व श्रीलंका के उदाहरण सबके सामने हैं।
कहा तो यह जा रहा है कि ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद अमरीका दुनिया से आर्थिक संबंधों पर फोकस करेगा। टेस्ला व अन्य अमरीकी कंपनियों का कारोबार भारत समेत दूसरे देशों में बढ़ाने के छिपे मकसद से भी इनकार नहीं किया जा सकता। वजह कुछ भी हो लेकिन वैश्विक मंच पर ऐसी संस्थाओं को लेकर ठोस कानून-कायदे जरूर बनने चाहिए।

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