अमित
शर्मा, नोएडा. आज गुरु पूर्णिमा है. इस दिन सभी लोग अपने गुरु को विशेष सम्मान देना, उनकी पूजा करना और उन्हें दान देना शुभ समझते हैं. लेकिन क्या आपको मालुम है कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका सही मतलब क्या है?
गलत मतलब निकाल रहे हैं लोग
आज कल सभी के हाथ में
स्मार्ट फोन है. हर किसी के पास सूचना पहुंचने का सबसे बड़ा स्रोत स्मार्ट
फोन बन गए हैं. लेकिन फेसबुक, व्हाट्सप्प, ट्विटर जैसे माध्यम से प्राप्त
सूचना पर भरोसा नहीं किया जा सकता कि ये कितना सही है. अक्सर लोग
अज्ञानतावश गलत सूचना को आगे बढ़ा रहे हैं. ठीक यही ‘गुरु पूर्णिमा’ को लेकर
भी हो रहा है.
कुछ लोग फेसबुक-व्हाट्सप्प पर ऐसे संदेश भेज रहे हैं
कि- गुरु पूर्णिमा का मतलब गुरु + पूर्ण + माँ, यानी माँ ही आपकी पूर्ण गुरु होती है. अपनी माँ को सम्मान देना तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन माँ के
सम्मान में किसी शब्द का गलत अर्थ निकालना और उसे दूसरों को भी बताना, किसी
भी तरह उचित नहीं है.
क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा
दरअसल
इस तिथि को महाभारत के रचयिता व्यास जी का जन्म हुआ था. उनका पूरा नाम
कृष्ण द्वैपायन व्यास है. उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी, इसी कारण
उन्हें वेद व्यास भी कहा जाता है. उन्हें आदि कवि के नाम से भी जाना जाता
है. उन्हें सम्मान देने के लिए ही उनके जन्मदिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप
में मनाया जाता है.
गुरु पूर्णिमा का शाब्दिक अर्थ
हम सभी
जानते हैं कि गुरु शब्द दो अक्षरों के संयोग से बना है. ‘गू’ जिसका अर्थ
अन्धकार होता है, और ‘रू’ अर्थात ‘प्रकाश’. यानी जो आपको अज्ञानता के
अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश की तरफ ले जाता है, वह आपका गुरु हुआ.
पूर्णिमा
शब्द भी इसी तरह दो लघु शब्दों के संयोग से बना है. पूर्ण यानी पूरा होना,
और ‘मा’ शब्द माह का परिचायक है. यानी इस तिथि को माह पूरा हुआ. दरअसल
आदिकाल में समय की गणना चन्द्रमा (या सूर्य) की गति पर निर्भर करती थी.
इसीलिए पूर्णिमा को चाँद से भी जोड़कर देखा जाता है. सम्भवतः इसीलिए इसके
गुरु स्वयं चन्द्रमा ही हैं.
गुरु पूर्णिमा के दिन के बाद से चार महीने अध्ययन की दृष्टि से बहुत उपयोगी होते हैं. बारिश का मौसम होने के कारण ये दिन न तो बहुत गर्म और न ही बहुत ठंडे होते हैं. प्राचीन काल में इन दिनों गुरु प्रवास करने की बजाय चार माह के लिए किसी एक स्थान पर रुक जाते थे और आसपास के गाँव के लोगों को ज्ञान दिया करते थे.
गुरु पूर्णिमा के अगले दिन से ही सावन की शुरुआत हो जाती है. इसे भगवान शिव का माह माना जाता है. इन दिनों में भगवान शिव की पूजा करना विशेष लाभकारी होता है.
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