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इस एकादशी का व्रत बिना पानी पीये रखा जाता है इसलिए इसे निर्जला (बिना जल के) कहा जाता है। निर्जला एकादशी का उपवास बिना किसी प्रकार के भोजन और पानी के किया जाता है। इस व्रत में बहुत कठोर नियम होते हैं। इसीलिए निर्जला एकदशी व्रत को अधिक कठिन माना जाता है।
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आखिर क्यों है निर्जला एकादशी का इतना महत्त्व
निर्जला एकादशी माना जाता है जो व्यक्ति सभी 24 एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते हैं वे केवल निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं। माना जाता है कि साल भर की सभी 24 एकादशियों के व्रत का फल केवल एक निर्जला एकादशी का रखने से मिल जाता है। इसीलिए इस व्रत का महत्व अधिक है।
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कब है निर्जला एकादशी
भीम एकादशी या निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से निर्जला एकादशी मई या जून के महीने में आती है। सामान्य तौर पर यह व्रत गंगा दशहरा के अगले दिन पड़ता है। लेकिन कई बार गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी एक ही दिन पड़ जाती है। इस वर्ष निर्जला एकादशी जून महीने की 23 तारीख यानी शनिवार को है। इस दिन एकादशी तिथि का प्रारंभ 03:19 बजे से होगा। इस व्रत को अगले दिन रविवार यानी 24 जून को पूजा करके खोला जाएगा। पं. विनोद कुमार शास्त्री के अनुसार इसका शुभ मुहुर्त 13:46 से 16:32 बजे के बीच है। साथ ही एकादशी तिथि का समापन 24 जून 2018 को 03:52 बजे होगा।
1. निर्जला एकादशी का व्रत पूरी तरह निराहार और निर्जला रखा जाता है। इस व्रत में कुछ भी खाया-पीया (यहां तक कि पानी भी नहीं) नहीं जाता। इसलिए यह व्रत बहुत कठिन होता है।
2. निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह में होती है और इस माह में भयंकर गर्मी पड़ती है। इस वजह से पानी भी न पीने के कारण यह व्रत मुश्किल माना जाता है।
3. इस व्रत को 24 घंटे से भी अधिक देर तक रखा जाता है यानी यह व्रत एकादशी तिथि के प्रारंभ होने के साथ ही प्रारंभ होता है और द्वादशी तिथि के प्रारंभ होने पर ही खत्म होता है।
4.निर्जला एकादशी व्रत के व्रत को अगले दिन द्वादशी तिथि को सूर्योदय के पश्चात् ही खोला जाता है। जिसके कारण इस व्रत की अवधि काफी लंबी हो जाती है।