केंद्र सरकार ने बढ़ाया खरीफ फसलों का
Msp , सीएम योगी ने किया स्वागत, कहा- बेहतर होगी किसानों की जिंदगीदरअसल देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अनाजों की कम से कम उतनी कीमत तय करने का विचार किया जिससे किसानों को किसी तरह का नुकसान न हो। इसके लिए उन्होंने अपने सचिव एलके झा के नेतृत्व में 1 अगस्त 1964 को एक समिति बनाई। इस समिति में एलके झा के अलावा टीपी सिंह, बीएन आधारकर, एमएल दंतवाला और एससी चौधरी शामिल थे। इस कमिटी का काम था कि वो अनाज के न्यूनतम और अधिकतम दाम तय कर सके। 24 सितंबर 1964 को इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। लाल बहादुर शास्त्री सरकार ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्यों की सरकारों से बात करके 13 अक्टूबर 1964 को अनाज का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर दिया।
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पहली बार इस फसल के लिए घोषित हुआ था एमएसपी
24 दिसंबर 1964 को इसको मंजूरी भी मिल गई, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका। भारत सरकार के सचिव बी शिवरामन ने 19 अक्टूबर 1965 को इस पर अंतिम मुहर लगाई, जिसके बाद 1966-67 के लिए पहली बार गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई। इसे आम तौर पर एमएसपी (Minnimum Support Price) कहा जाता है। इसके बाद से ही हर साल सरकारों ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की शुरुआत की। ये समर्थन मूल्य फसलों की बुवाई से ठीक पहले घोषित किया जाता है।
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इसलिए घोषित किया जाने लगा समर्थन मूल्यन्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने के पीछे सरकार की ये मंशा थी कि अगर किसी साल अनाज की पैदावार ज्यादा भी होती है, तो भी अनाज की कीमतें एक तय सीमा से नीचे न जाएं। साथ ही किसानों को अपनी फसल की लागत के साथ ही कुछ मुनाफा भी मिल जाए। इसके अलावा सरकार का मकसद किसानों की मुश्किलों को कम करना भी है। सरकार न्यूतम समर्थन मूल्य तय करने के बाद स्थानीय सरकारी एजेंसियों के माध्यम से खरीदकर फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और नेफेड के पास उसका स्टॉक करती है। फिर इसी स्टोर से वो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए सरकार गरीबों तक कम कीमत में अनाज पहुंचाती है।
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1966-67 में जब न्यूतम समर्थन मूल्य की शुरुआत हुई थी, तो उस वक्त सिर्फ एक फसल गेहूं के लिए इसे तय किया गया था। इसकी वजह से किसान और फसलों को छोड़कर सिर्फ गेहूं की बुवाई करने लगे। इसके बाद अनाजों का उत्पादन कम हो गया। इसके बाद सरकार ने पहले धान औऱ फिर तिलहन और दलहन की कुछ फसलों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिया। फिलहाल सरकार की ओर से कुल 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है।इन फसलों में सात अनाज धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ, जई, रागी के साथ ही पांच दालें चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर, सात तेल मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, शीशम, सूरजमुखी, कुसुम और नाइजर सीड के साथ ही चार व्यापारिक फसलों गरी, गन्ना, कपास और जूट शामिल हैं।
एमएसपी तय करने के लिए देश में एक संस्था काम करती है, जिसका नाम है कृषि लागत एवं मूल्य आयोग। ये संस्था देश के कृषि मंत्रालय के तहत आती है। ये संस्था जनवरी 1965 में बनाई गई थी और तब इसका नाम था कृषि मूल्य आयोग. 1985 में इसमें लागत भी जोड़ दी गई और नाम हो गया कृषि लागत एवं मूल्य आयोग। ये संस्था कृषि मंत्रालय, आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति और भारत सरकार को अपने आंकड़े बताती है। इन तीनों जगहों से मंजूरी मिलने के बाद अलग-अलग फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है। वहीं गन्ना का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए एक अलग आयोग है, जिसे गन्ना आयोग कहा जाता है।