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भोपाल

मां से कहा- मरने नहीं कुछ करने जा रहा हूं और एवरेस्ट पर फहरा दिया तिरंगा

 एवरेस्ट की एक बार की चढ़ाई में 25 से 30 लाख रुपए का खर्चा आता है। पहली बार मुझे कई लोगों की मदद और अपनी पूंजी के साथ इस रकम का जुटाया। इस बार मुझे कोई औपचारिक स्पांसर नहीं मिला।

भोपालJun 19, 2016 / 06:00 pm

नितेश तिवारी

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भोपाल। भारतीय पर्वतारोही संस्थान के प्रोफेशनल माउंटेनियर रत्नेश बताते हैं कि माइनस 40 डिग्री तापमान और हवा के तेज थपेड़ों के बीच उस समय बस मन में एक ही बात बार-बार आ रही थी कि मुझे अपना वादा पूरा करना है। मेरे सामने कई कठिनाईयां आईं, लेकिन वह मेरा रास्ता नहीं रोक सकीं। मैं कदम आगे बढ़ाता गया और एवरेस्ट की ऊंचाई पर पहुंचकर जब राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ गया तो शरीर में ऊर्चा की ऐसी लहर उठी कि सारी थकान भूल गया।


मुझे शुरू से ही एवरेस्ट पर चढऩे का जुनून सवार रहा। मेरे दोस्त और फैमिली ने मना किया था कि तूं वहां मरने के लिए क्यों जा रहा है। तब मैंने मां से कहां ‘मैं वहां मरने नहीं कुछ करने जा रहा हूं, मैं कुछ परिवर्तन करूंगा’। मैंने मन में ठानी और माउंट एवरेस्ट पर झंडा लहराकर सांस ली। यह कहना है माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फरहराने वाले सतना के पर्वतारोही रत्नेश पांडे का। वे यहां शुक्रवार को भोपाल पहुंचे। इस दौरान उन्होंने एवरेस्ट की रोमांचक जर्नी से जुड़ी बातें शेयर कीं। 
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दूसरी बार मिली सफलता
30 वर्षीय रत्नेश बताते हैं एवरेस्ट पर जानी की तैयारी तीन साल से कर रहा हूं। मैंने नेपाल जाकर पता किया कि मुझे क्या करना होगा। फिर मैंने उनके बताए अनुसार अटल बिहारी बाजपेयी पर्वतारोहण और संबद्ध खेल संस्थान से बेसिक और एडवांस की कोचिंग ली। इस दौरान मैंने 12 बार माउंटेन पिक जमा की। फिर मुझे 2015 में एवरेस्ट पर चढऩे का मौका मिला। लेकिन, उस वक्त नेपाल में भूकंप अपने के कारण मेरा ये सपना पूरा नहीं हो सका। आज मेरा यह सपना पूरा हो चुका है। मैं खुश हूं। 


वहां समझ में आई पानी की अहमियत
रत्नेश बताते हैं कि एक दिन कैंप में सुबह बहते पानी से मुंह धो रहा था। वहां मौजदू मेरे साथी ने मुझे रोका और कहां कि तुम ये क्या कर रहे हों। मैंने कहां मुंह ही तो धो रहा हूं। उसने मुझे बताया कि इस पानी का उपयोग नीेचे रहने वाले लोग करते हैं। वह इस पानी को पीते हैं। हम यहां एेसा नहीं कर सकते। यहां जीतने भी लोग रहते हैं ऐसा नहीं करते। इससे मुझे पता चला की साफ-सफाई और पानी कितना जरूरी होता है।


दोस्त से पैसे लिए थे उधार
रत्नेश बताते हैं कि एवरेस्ट की एक बार की चढ़ाई में 25 से 30 लाख रुपए का खर्चा आता है। पहली बार मुझे कई लोगों की मदद और अपनी पूंजी के साथ इस रकम का जुटाया। इस बार मुझे कोई औपचारिक स्पांसर नहीं मिला। मैंने दोस्तों से लोन लिया और उधर से रुपए जुटाकर निकल पड़ा। दिमाग में सिर्फ एक ही बात थी कि इस बार चूकना नहीं हैं।


मप्र में जागरूकता फैलना है मकसद
29035 फीट ऊंची माउंट एवरेस्ट की चोटी को अपने मजबूत इरादों से बोना करने वाले रत्नेश कहते हैं कि एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचना हर व्यक्ति का सपना होता है। मैं भी एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचना चाहता था। खासतौर पर मैं चाहता था कि मप्र में पर्वतारोहण को लेकर लोगों में और जागरूकता आए। 


इसी को देखते हुए मैंने मप्र सरकार के सामने दो प्रस्ताव रखे। इसमें एक एवरेस्ट पर तिरंगा फहराना और दूसरा प्रदेश में ऐसी साहसिक गतिविधियों को बढ़ावा देना शामिल था। मुझे खुशी है कि मुझे इन सपनों को पूरा करने की इजाजत मिली। अब मेरा लक्ष्य प्रदेश में पर्वतारोहण के लिए लोगों में जागरूकता फैलाना है। इसके लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है। 


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