एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का रेकॉर्ड पहले तो बहुत अच्छा था, लेकिन अब ऐसे उदाहरण मिलते जा रहे हैं कि यह कंपनी भी अपने उपभोक्ताओं को बीमा राशि देने में घुमाने लगी है। कांकेर उपभोक्ता आयोग ने ऐसी ही एक बीमा राशि निकालने में भटक रही आदिवासी विधवा महिला को इंसाफ दिलाया है।
CG News: बीमा कंपनी के रवैये से परेशान हुई महिला
CG News: उपभोक्ता आयोग से मिली जानकारी के अनुसार, बाज़ार पारा, सुर डोंगर, केशकाल निवासी सावित्री सलाम के पति स्व. श्रवण सलाम द्वारा एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कांकेर शाखा से अपने नाम पर दो पॉलिसियां ली गई थीं, जिनमें पीडिता को नॉमिनी बनाया गया था। पहली पॉलिसी 31-12-2015 को तथा दूसरी पॉलिसी 3-9-2019 को जारी की गई थी। दोनों पॉलिसियों के समय श्रवण सलाम बिल्कुल स्वस्थ थे, लेकिन 16-6-2021 को कोरोना महामारी के कारण अचानक श्रवण सलाम की
मृत्यु हो गई।
नॉमिनी होने के नाते दोनों पॉलिसियों का बीमा धन
पीड़िता सावित्री सलाम को मिलनी चाहिए थी, लेकिन एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस ने पहली पॉलिसी के 15 लाख उनके खाते में जमा किए। दूसरी पॉलिसी का दावा निरस्त कर दिया जो कि बड़ी रकम थी, जिसकी वजह बताते हुए झूठा आरोप लगा दिया कि श्रवण सलाम दूसरी पॉलिसी लेते समय डायबिटीज़ से पीड़ित थे और इस तथ्य को छुपाने के कारण उनका बीमा धन उनकी पत्नी को न देकर क्लेम निरस्त किया जाता है। बीमा कंपनी के इस रवैये से परेशान होकर पीड़िता ने उपभोक्ता आयोग की शरण ली।
बीमा कंपनी को लगा झटका
यहां उनके मामले पर आयोग की
अध्यक्ष सुजाता जसवाल तथा सदस्य डाकेश्वर सोनी द्वारा जांच की गई, जिसमें यह तथ्य उजागर हुआ कि जब श्रवण सलाम दूसरी पॉलिसी लेते समय अस्वस्थ थे। तो कंपनी ने उनका बीमा किया ही क्यों था जबकि बीमा पॉलिसी लेने वालों का मेडिकल किया जाता है। एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस द्वारा इतनी बड़ी रकम के बीमे पर भी उचित मेडिकल जांच में लापरवाही क्यों की गई। अब क्लेम की रकम देने की नौबत है तो बिना सबूत बीमारी का बहाना बताया जा रहा है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट में मनमोहन नंदा विरुद्ध यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी और राष्ट्रीय आयोग में बजाज एलियांज लाइफ इंश्योरेंस बनाम राजकुमार के फैसले को नजीर मानते हुए फोरम ने दावे को अस्वीकार करने को अमान्य माना गया है क्योंकि डॉक्टर द्वारा फिटनेस की पूर्ण संतुष्टि के बाद ही पॉलिसी जारी की जाती है। उपर्युक्त नज़ीरों के आधार पर उपभोक्ता आयोग ने 14-8-2024 को फैसला दिया कि बीमा कंपनी को सावित्री सलाम के दावे के अनुसार 50 लाख रुपए और उस पर संपूर्ण रकम अदायगी तक 7 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी एक माह के भीतर प्रदान करना होगा।
इसमें विलंब होने पर ब्याज की दर 9 प्रतिशत कर दी जाएगी। साथ ही 10,000 अर्थदंड का आदेश भी दिया गया है। यह रकम एक माह के भीतर जिला आयोग में उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा की जाएगी। फरियादी को हुई मानसिक पीड़ा व परेशानी के संबंध में क्षतिपूर्ति राशि 10,000 तथा मुक़दमे का हरजा खर्चा 3000 भी बीमा कंपनी को देनी होगी।