अब इस बिल के कानून बनने के बाद राज्यपाल विश्वविद्यालयों के चांसलर नहीं होंगे। वहीं अब यह विधेयक सोमवार को विधानसभा में पारित हो गया। लेकिन अभी इसे कानून बनाने के लिए राज्यपाल के हस्ताक्षर की मंजूरी जरूरी है, ऐसे में इस विधेयक के कानून बनने को लेकर अभी संदेह जताया जा रहा है। क्योंकि राज्यपाल खुद अपने अधिकारों में कटौती करने वाले विधेक पर हस्ताक्षर शायद ही करें।
बता दें, अगर राज्यपाल इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर देते हैं तो उनसे राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर होने का अधिकार छिन जाएगा, और उनकी जगह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को विश्वविद्यालयों का चांसलर बना दिया जाएगा। बता दें, इसके साथ हीं ममता सरकार राज्यपाल जगदीप धनखड़ को राज्य के निजी विश्वविद्यालयों में विजिटर के तौर पर हटाने के लिए भी कानून में संशोधन करने की तैयारी कर रही है।
वहीं इन विधेयकों का विरोध कर रहे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ये सपना पूरा नहीं होगा। विधेयक के पारित होने पर उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी भले हीं सेवानिवृत्त हो जांए, लेकिन विश्वविद्यालयों का चांसलर बनने का सपना पूरा नहीं कर पाएंगी।
उन्होंने आगे कहा कि अगर विधेयक पर राज्यपाल हस्ताक्षर कर भी देते हैं तो उन्हें केंद्र सरकार के अनुमोदन की जरूरत होगी। मैं केवल याद दिलाना चाहता हूं कि पश्चिम बंगाल के ऐसे कई प्रस्ताव दिल्ली में लटके हुए हैं। और इसी तरह से विश्वविद्यालयों का चांसलर बनने का ममता बनर्जी का सपना भी लंबित हो जाएगा।
आपको बता दें, सीएम ममता और राज्यपाल जगदीम धनखड़ के बीच ऐसे कई मुद्दों पर विवाद काफी लंबे समय से चल रहा है। दोनों एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं, कभी ममता कहती हैं की राज्यपाल केंद्र के आदेश थोपते रहते हैं, तो वहीं राज्यपाल कहते हैं कि वह जो भी काम करते हैं सब संविधान के मुताबिक होता है।