मासिक धर्म अवकाश के लिए नीतियाँ बनाने के लिए केंद्र और राज्यों को निर्देश देने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “ऐसी छुट्टियों को अनिवार्य करने से महिलाओं को कार्यबल से बाहर कर दिया जाएगा। हम नहीं चाहते कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए हम जो कुछ भी करने की कोशिश कर रहे हैं, वह उनके लिए नुकसानदेह हो।”
नीतिगत पहलुओं से जुड़ा मामला
न्यायालय ने कहा कि यह मुद्दा कई नीतिगत पहलुओं से जुड़ा है और इसमें न्यायालय के हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं है। न्यायालय ने कहा, “हम याचिकाकर्ता को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में सचिव और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के पास जाने की अनुमति देते हैं। हम सचिव से अनुरोध करते हैं कि वे नीतिगत स्तर पर मामले को देखें और सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद निर्णय लें और देखें कि क्या कोई आदर्श नीति बनाई जा सकती है।” न्यायालय ने कहा कि यह निर्णय किसी भी राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में कदम उठाने के आड़े नहीं आएगा।
फरवरी में दिए थे ये निर्देश
शीर्ष न्यायालय ने इसी वर्ष फरवरी में भी ऐसा ही रुख अपनाया था, जब एक याचिका में सभी राज्यों को महिला छात्राओं और कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म के दर्द से संबंधित अवकाश के लिए नियम बनाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। उस समय भी न्यायालय ने कहा था कि यह मामला नीतिगत क्षेत्र में आता है। वर्तमान में, बिहार और केरल देश के दो ऐसे राज्य हैं, जहाँ मासिक धर्म अवकाश का प्रावधान है। जहाँ बिहार में महिला कर्मचारियों के लिए दो दिन की छुट्टी की नीति है, वहीं केरल में महिला छात्रों के लिए तीन दिन की मासिक छुट्टी का प्रावधान है।