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राजस्थान के चार शीर्ष अतिदोहित जिलों में शामिल है नागौर जिला
केन्द्रीय भू-जल विभाग की प्री-मानसून रिपोर्ट में 2019 के मुताबिक बीकानेर में अधिकतम 128.15 मीटर बिलो ग्राउंड लेवल (एमबीजीएल) पर पानी है। इतना ही नहीं गहराई के लिहाज से टॉप चार सभी जिले राजस्थान के हैं। मसलन जोधपुर में 115.38 एमबीजीएल, नागौर में 108.40 एमबीजीएल और जैसलमेर में 107.26 एमबीजीएल भूजल है। जबकि वर्ष राज्य की ओर से संचालित वर्ष 2020 एवं 2021 की रिपोर्ट में इसमें शामिल नागौर जिले की हालत बेहद खस्ता हो चुकी है। विशेषज्ञों की माने तो पानी की कमी के चलते निरन्तर खोदे जा रहे गहरे कुओं और ट्यूबवेलों द्वारा भूमिगत जल का अन्धाधुन्ध दोहन होने से भूजल का स्तर निरन्तर घटता जा रहा है। भूजल भण्डार का उपयोग बैंक में जमा राशि की तरह होता है। बैंकिंग नियम में जमा किए गए अनुपात के अनुसार ही राशि निकाल सकते हैं। जबकि यहां पर जमा करने वाला कोई नहीं, केवल निकालने का काम किया जा रहा है।
खण्ड लाभान्वित ग्रामों की संख्या नलकूपों की संख्या जनता जल योजना नलकूप
नागौर 423 673 348
मकराना 256 816 127
डीडवाना 291 734 62
कुचामन 222 163 76
मेड़ता 399 487 43 जलदाय एरिया के तहत आने वाले कुल गांवों की संख्या- 1589
सरकारी नलकूपों की संख्या-2873
जनता जल योजना नलकूपों की संख्या-656
हर घंटे हजार लीटर निकल रहा भूजल
प्रति घंटे सरकारी नलकूप से दस हजार लीटर जल निकल रहा है। निजी नलकूपों से निकलने वाले भूजल की मात्रा का आंकड़ा जलदाय विभाग के पास भी उपलब्ध नहीं है, लेकिन दबी जुबान से अधिकारी भी स्वीकारते हैं कि लगातार अत्याधिक मात्रा में जलादोहन से संतुलन अब बिगड़ चुका है। इस पर जल्द ही प्रभावी कदम नहीं उठे तो फिर हालात नहीं संभलंगे।
कार्बन उत्सर्जन भी हो रहा…
विशेषज्ञों के अनुसार बड़े पैमाने पर पानी के पंपों या ट्यूबवेल के जरिए हो रहा भूमिगत जल का दोहन से न केवल कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, बल्कि पानी निकालने के लिए पंपों के उपयोग से होने वाला उत्सर्जन और बायोकार्बोनेट के निष्कर्षण से होने वाला कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन भी होता है। यह स्थिति समग्र रूप से पर्यावरणीय संतुलन के लिए बड़ा खतरा बन गई है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ…….
कृषि महाविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रो. डॉ. विकास पावडिय़ा कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल का दोहन में दो से तीन वर्षों के अंतराल में औसत से भी ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। इसके पीछे का कारण स्पष्ट है कि भूजल दोहन को लेकर एक व्यवस्थित नीतियां या प्रावधान होने चाहिए, क्यों कि जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि एवं सरकार की नीतियां जल संकट का मुख्य कारक होती हैं। विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, लेकिन जल स्रोत केवल चार प्रतिशत ही है। वर्षा के रुप में पृथ्वी पर गिरने वाला पानी कई माध्यमों से मिट्टी में समाहित होकर भूमिगत जल स्तर तक पहुँचता है, और भूजल स्तर की मात्रा में वृद्धि करता हैं। इसी घटना को हम भूजल पुनर्भरण कहते हैं। इसी जल को तेजी से निकालने का कार्य किया जा रहा है। इस संबंध में सरकार को विशेषज्ञों के साथ मिलकर कोई नीति बनानी होगी, नहीं तो प्रदेश से भूजल के अब समाप्त होने का खतरा मंडराने लगा है।