महंगाई: मंडी में 10 से 15 रुपए प्रतिकिलो बिक रही भिंडी दुकानों पर 80 रुपए किलो
Price Rise vegetables : खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करने वाले अन्नदाताओं से सस्ती दर पर सब्जियां ली जा रही है, लेकिन आमजन को वही सब्जी खरीदने के लिए पांच से छह गुना दाम चुकाने पड़ रहे हैं।
नागौर।शहर में सब्जी की दुकानों पर लहसुन 100 रुपए का ढाई सौ ग्राम यानि की 400 रुपए किलो, और भिंडी 80 रुपए प्रति किलो बिक रही है। जबकि सब्जीमंडी में लहसुन 160 से 180 रुपए प्रतिकिलो और भिंडी के भाव महज 10 से 15 रुपए प्रतिकिलो है। खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करने वाले अन्नदाताओं से सस्ती दर पर सब्जियां ली जा रही है, लेकिन आमजन को वही सब्जी खरीदने के लिए पांच से छह गुना दाम चुकाने पड़ रहे हैं।
सब्जी विक्रेताओं की माने तो सब्जी मंडी से लेकर आने, उसे धुलने और व्यवस्थित कर दुकान पर सजाने तक में उन्हें अलग से व्यय करना पड़ता है। इसलिए ग्राहक से खरीद दर के साथ इसे व्यवस्थित करने तक की लागत भी लेनी पड़ती है। इसलिए लोगों को सब्जियां महंगी लगती है। इसकी पड़ताल करने पर सामने आया कि पेट्रोल एवं आढ़त आदि का खर्च जोड़े जाने के बाद भी सब्जियां इतनी महंगी नहीं बिकनी चाहिए। कुल मिलाकर कड़ी मेहनत के बाद भी किसान को बमुश्किल आने-जाने का खर्च एवं फसल लागत की राशि ही मिल पाती है।
बारिश के दौरान उम्मीद थी कि सब्जियों के भाव गिरेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सब्जियां सस्ती होने के बजाय और महंगी बिकने लगी है। दो सौ रुपए किलो में बिकने वाला लहसुन महज एक माह के अंतराल में ही 400 रुपए प्रतिकिलो के भाव जा पहुंचा। खास बात यह है कि सामान्यत: 15-20 रुपए में बिकने वाला आलू वर्तमान में खुदरा में 30-35 रुपए प्रतिकिलो के भाव बिक रहा है।
सब्जियोंके भाव अव्यवस्थित रहने से कौन सी सब्जी किस दर में बिकेगी, इसका निर्धारण खुदरा विक्रेता गुपचुप रूप से खुद ही तय कर लेते हैं। सब्जी मंडी में सोमवार को भावों की पड़ताल करने पर सामने आया कि 25 से 30 रुपए प्रतिकिलों का टमाटर बाहर 50-60 रुपए में, और 25 से 30 रुपए प्रतिकिलों की हरी मिर्ची भी 60 रुपए में मिल रही है। यही स्थिति, खीरा, फूलगोपी, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च, अदरक एवं नींबू की है।
इस संबंध में गांधी चौक एवं दिल्ली दरवाजा क्षेत्र के दुकानदार गणेशराम व उस्मान ने बातचीत में बताया कि मंडी से थोक भाव में आने वाले सब्जियों में से कुछ सब्जियां खराब निकल जाती हैं। इसके अलावा वहां चार या पांच किलो नहीं, बल्कि पूरी खेप लेनी पड़ती है। सारी सब्जियां बिक नहीं पाती है। ऐसे में सभी का मिलाकर खर्चा निकालना पड़ता है। सब्जियां आप गांधी चौक में लीजिये या फिर दिल्ली दरवाजा में, इनके भावों में कोई विशेष अंतर नहीं होता। इसे तय कौन करता है इस सवाल का जवाब जानने के लिए दुकानदारों से बातचीत की, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल पाई।
फिर भी सब्जी मंहगी बिक रही…
सब्जी मंडी में किसान सब्जी लेकर आता है तो उस पर सरकारी स्तर पर केवल एक प्रतिशत कृषक कल्याण शुल्क लगता है। यह शुल्क वर्ष 2020 से ही लग रहा है। जबकि व्यापारियों की ओर से किसान का माल बेचने के एवज में आढ़त दर कुल सब्जी का छह प्रतिशत वसूला जाता है। इन दोनों दरों को मिलाकर आंकलन करने के बाद भी डेढ़ गुना दर पर सब्जी बाहर बेचे जाने की स्थिति में सब्जियों की दर इतनी ज्यादा नहीं होती है, जितने में ग्राहकों को मिल रही है। विशेषज्ञों की माने तो इस दर में पेट्रोल आदि का खर्च जोडने के बाद भी बाजार में बिक रही सब्जियों की दर कई गुना है। इससे साफ है कि मूल्य नियंत्रण की कोई ठोस नीति नहीं होने से उपभोक्ताओं के साथ किसान भी छला जा रहा है।
सब्जी मंडी में कुल दुकानों की संख्या 23, सब्जी मंडी में रोजाना होने वाला कारोबार 50 से 60 लाख, कृषक कल्याण शुल्क 1 प्रतिशत, माल पर व्यापारी की आढ़त-6 प्रतिशत
इनका कहना…
सब्जीमंडी में सब्जी आती है तो यहां पर निर्धारित प्रावधानों के तहत ही व्यापार किया जाता है। काश्तकारों को उचित मूल्य दिलाने का प्रयास सदैव रहता है। दुकानों में बिक रही सब्जियों के बारे में कुछ कह नहीं सकता हूं। सभी को अपनी लागत निकालकर ही सामान बेचना पड़ता है।- रामकुमार भाटी, अध्यक्ष, सब्जी मंडी यूनियन
सब्जी मंडी में मंडी प्रशासन के अनुसार सब्जियों के व्यापार के लिए माकूल व्यवस्था की गई है। किसानों से केवल कृषक कल्याण कोष के तौर पर एक प्रतिशत का शुल्क लिया जाता है। खुले बाजार की सब्जियों के भाव पर मंडी प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं रहता है।- रघुनाथराम सिंवर, सचिव, कृषि उपजमंडी सचिव