सूत्रों के अनुसार हत्या, अपहरण/बलात्कार के साथ पोक्सो, छेड़छाड़ समेत अन्य तरीके के अपराध हुए। नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में करीब सात साल में पोक्सो के नौ सौ से अधिक मामले दर्ज हुए हैं। नागौर-मेड़ता पोक्सो कोर्ट में करीब तीन सौ मामलों की सुनवाई चल रही है। इनमें पादूकलां थाना इलाके में मासूम की बलात्कार के बाद हत्या करने वाले आरोपी को फांसी की सजा सुनाने के बाद करीब साढ़े तीन साल में 283 मामले दर्ज हुए हैं।
सूत्रों के अनुसार नागौर, डीडवाना, परबतसर (मेड़ता के बंदी भी) जेलों की बात करें तो करीब चार सौ बंदी में से पचास से अधिक पोक्सो मामलों में बंद हैं। कुछ मामलों के बंदी अजमेर जेल में हैं। पहले मेड़ता पोक्सो कोर्ट के चलते अधिकांश बंदी मेड़ता जेल में थे। अब नागौर जेल में भी इन बंदियों की संख्या काफी हो चुकी है।नाबालिग लड़की से छेड़छाड़/बलात्कार के मामलों में तेजी आई है। इनमें कई मामले ऐसे हैं जो प्रेमजाल में फंसकर घर से भागने के बाद परिवार वालों के दबाव के कारण दर्ज करवाए जा रहे हैं। कई मामले बाद में झूठे पाए गए। आपसी रंजिश में दूसरों को फंसाने के लिए भी नाबालिग के जरिए झूठे मामले दर्ज कराना सामने आया है।
पोक्सो के अलावा अन्य अपराध भी खूब सूत्र बताते हैं कि पोक्सो/बलात्कार के अलावा बालश्रम कराने के साथ उनकी हत्या, हत्या के प्रयास समेत अन्य अपराध भी दर्ज हैं। कई मामलों में बच्चों को डरा-धमका कर नशे की तस्करी तक कराने की बात सामने आई है। नाबालिग को बेचने जैसे अपराध भी हुए। प्रदेश में बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराध में साठ फीसदी से अधिक पोक्सो के हैं।
22 हजार से अधिक अपराधी आंकड़ों पर नजर डालें तो एक जनवरी 2021 से 30 नवम्बर तक बच्चों पर अपराध के मामले में करीब 23 हजार अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई हुई । बच्चों को पहले लालच देकर अपनी गिरफ्त में लिया गया, उसके बाद अपराध किया। अपराध करने वालों में अधिकांश जानकार या रिश्तेदार निकले।
बाल अपचारी भी खूब बढ़े बढ़ते नशे की खुराक या फिर पैसा कमाने का शॉर्ट कट अपनाने के लिए नाबालिग अपराध की डगर चुन रहे हैं। पिछले पांच साल में नागौर (डीडवाना-कुचामन) में करीब एक दर्जन से अधिक हत्या के मामले में बाल अपचारी निरुद्ध किए गए। इसके अलावा नशे की तस्करी ही नहीं चोरी-नकबजनी यहां तक कि लूट/अपहरण के मामले में भी उनकी भूमिका रही है। करीब 237 मामले बाल अपचारियों के अपराध में शामिल होने के सामने आए।
कोशिश नहीं हो रही कामयाब बाल अपचारियों को दोबारा डगर पर लाने के प्रयास कारगर साबित नहीं हो रहे। शिक्षा से जोडऩे के साथ समझाइश कर अपराध से दूर करने की कोशिश फेल हुई। मादक पदार्थ तस्कर दिलीप विश्नोई, संदीप उर्फ शेट्टी को शूट करने वाले नाबालिग समेत ऐसे अपचारी हैं , जिन्हें अपराध के दलदल से दूर रखने की कोशिश तो हुई पर कामयाब नहीं हो पाई। परिजनों के साथ अन्य एजेंसी में समझाने में फेल रहे।
सर्वाधिक पीडि़त सोलह से अठारह साल वाली आंकड़ों पर गौर करें तो करीब ढाई साल में एक जनवरी 2022 से 31 मई 2024 तक सोलह से अठारह साल आयु वाली 12 हजार 954 बालिकाओं पर अपराध हुआ, जबकि इस दौरान इस उम्र के पीडि़त बालकों की संख्या सिफज़् 1933 रही। ग्यारह साल से कम उम्र की बालिकाओं की संख्या 640, चौदह साल से कम उम्र की दो हजार 85, सोलह साल से कम उम्र की करीब साढ़े चार बालिकाएं अलग-अलग अपराध में पीडि़त रहीं।
इनका कहना बाल अपराधी बढ़ रहे हैं। बच्चों के विरुद्ध अपराध बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए जितने कानून/एजेंसी बने उनका असर व्यापक नहीं रहा। अपराध कम करने की कवायद इसलिए पूरी नहीं हो पा रही कि व्याप्त खामियों को दूर नहीं किया जा रहा है।
-विजय गोयल, राज्य समन्वयक, राज्य बाल अधिकारिता संरक्षण साझा अभियान, जयपुर 00000000000000000000000 सजगता से बच्चों पर होने वाले अपराध पर काबू पाया जा सकता है तो अपराध की डगर पर जाने वाले बच्चों को भी रोक सकते हैं। इनकी मॉनिटरिंग परिजनों से शुरू होती है जो स्कूल टीचर्स के साथ समाज/आस-पड़ोस के लोगों की एकजुटता से पूरी हो पाएगी।
-नारायण टोगस, एसपी नागौर