सूत्रों के अनुसार टाइप-1 डायबिटीज से ग्रसित बच्चे का शरीर पर्याप्त इंसुलिन उत्पन्न करने में असमर्थ होता है। शरीर में होने वाले वायरल संक्रमण के कारण भी डायबिटीज और टाइप 1 डायबिटीज का खतरा बच्चों में ज्यादा रहता है। इसकी वजह से शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने लगता है। इसके अलावा अग्नाशय में खराबी होने पर शरीर में इंसुलिन का निर्माण सही ढंग से नहीं हो पाता है। इससे शरीर में शुगर का पाचन सही तरीके से नहीं हो पाता और ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। डाइट और लाइफ स्टाइल में गड़बड़ी के कारण भी बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज होने का खतरा रहता है।
आंकड़ों के मुताबिक 5 साल से कम उम्र के बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज की समस्या हर साल लगभग 3 से 4 फीसदी तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह से बच्चे का शारीरिक विकास प्रभावित होने के साथ शरीर के भीतरी अंगों को भी नुकसान हो सकता है। लंबे समय तक बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज की समस्या जन्म के समय से ही होती है। इसके लिए आनुवांशिक कारण जिम्मेदार माने जाते हैं। बच्चों के टाइप-1 के बढ़ते खतरे को देखते हुए सभी जगह अलर्ट कर इस पर नियंत्रण की कवायद शुरू की गई है।
पायलट प्रोजेक्ट चार जिलों में नागौर शामिल शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ मूलाराम कड़ेला ने बताया कि यह बीमारी अधिकतर बच्चों में होती है। इससे ग्रसित बच्चा इंसुलिन पर निर्भर रहता है। दिन में तीन-चार बार इंसुलिन लगानी पड़ती है। तेजी से बढ़ रही इस बीमारी को देखते हुए नागौर को भी पायलट प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है। पुराना अस्पताल में मधुहारी क्लिीनिक खोली गई है, जहां इस रोग से ग्रसित बच्चे अपना मुफ्त उपचार ले सकेंगे। सरकार उनके इंसुलिन समेत अन्य खर्चे वहन करेगी। फिलहाल हर शुक्रवार को इन रोगियों को बुलाया जाएगा। नागौर (कुचामन-डीडवाना) जिले में ऐसे बच्चों के लिए सर्वे कराया जा रहा है। ऐसे बच्चों का जयपुर-दिल्ली तक उपचार लेने की जानकारी सामने आई है। अभी उनके पास महीने में पांच-सात ऐसे मरीज आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि कॉम्प्लीकेशन बढ़ते हैं, हार्ट/गुर्दे/आंख खराब हो जाती है, लम्बाई नहीं बढ़ती, सुई लगने से स्किन इन्फेक्शन हो जाता है।
हालात बद से बदतर… सूत्र बताते हैं कि इस बीमारी ग्रसित बच्चे पर औसतन प्रतिमाह चार-पांच हजार रुपए खर्च होते हैं। बच्चों की रोजाना लगने वाली तीन-चार सुई और उसके लिए भी अनेक परेशानियां। यह भी सामने आया कि इसमें असमर्थ लोगों के कई बच्चे असमय ही काल का ग्रास बन गए। इंसुलिन नहीं लगाने या फिर लापरवाही बरतने पर कई बच्चों के ऑर्गन/अंग खराब हो रहे हैं। ऐसे बच्चों की क्वॉलिटी ऑफ लाइफ इम्प्रूव करने के लिए सरकार ने जयपुर, नागौर समेत चार जिलों में इसकी पहल की है। बताया जाता है कि नागौर (डीडवाना-कुचामन) में ऐेसे बच्चों का पता लगाने के लिए सर्वे किया जा रहा है।
मंत्री का इंतजार… सूत्र बताते हैं कि मधुहारी क्लिीनिक तैयार हो चुकी है, फिलहाल दिसम्बर में इसे शुरू होना है। बताया जाता है कि नागौर को प्रदेश के चार जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना गया है तो इसका शुभारंभ चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर करेंगे। अब पहले इसकी तैयारी की जा रही है।
आज होगा निरीक्षण.. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. एसके भास्कर व जेएलएन अस्पताल के पीएमओ डॉ आरके अग्रवाल सोमवार को पुराना अस्पताल का निरीक्षण करेंगे। वे अस्पताल के सिस्टम का बारीकी से निरीक्षण करेंगे। मरीजों को मिल रही सुविधा के साथ स्टाफ से भी बातचीत कर उनका हाल जानेंगे।
इनका कहना नागौर के साथ डेगाना और जायल में मधुहारी क्लिीनिक खुलेगा। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर इसका जल्द शुभारंभ करेंगे। इस संबंध में पुराना अस्पताल स्थित क्लिीनिक का निरीक्षण कर व्याप्त खामियां दूर करने को कह दिया है।
-डॉ जुगल किशोर सैनी, सीएमएचओ, नागौर।