वैसे कैराना सीट जितना जीतना बीजेपी के लिए अहम है उतना ही विपक्ष के रालोद के लिए भी। बीजेपी के लिए इस सीट की अहमियत इसलिए है क्योंकि इस सीट का प्रतिनिधित्व पार्टी के कद्दावर नेता हुकुम सिंह करते रहे हैं और पश्चिम उत्तर प्रदेश में आधार बनाए रखने के लिए कैराना की जीत जरूरी है। वहीं राजनीति के हाशिये पर चल रही रालोद ने इस सीट को जितने के लिए हर संभव कोशिश की है। यहां तक की इस सीट से पहले रालोद के जयंत चौधरी चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन बीजेपी से टक्कर लेने और गठबंधन के ऐलान के बाद संयुक्त प्रत्याशी उतारने का फैसला हुआ। क्योंकि रालोद इस सीट के जरिए पार्टी को फिर से जीवित कर 2019 में मजबूती के साथ ताल ठोकने की तैयारी में है।
बीजेपी ने इस सीट को जितने के लिए कोई कोर सकर तो नहीं छोड़ी है लेकिन जीत की ज्यादातर दारोमदार इलाके के जातीय समीकरण पर टिका है। कैराना सीट शामली जिले की तीन और सहारनपुर जिले की दो विधानसभाओं को मिलाकर बनी है। जिसके लिए करीब 60 फिसदी वोटर प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला कर रहे हैं। अगर वोटों को देखे तो आरएलडी की उम्मीद होने के कारण तबस्सुम को जाटों का समर्थन मिलेगा। एसपी का समर्थन मुसलमानों और ओबीसी के वोट दिला सकता जबकि बीएसपी का समर्थन अनूसूचित जाति के वोट दिलाएगा, कांग्रेस का समर्थन ऊंची जातियों के साथ मुसलमानों के वोट भी दिलाएगा।