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ईएसजी के उपयोग से नई संभावनाओं के द्वार खोल सकती है बीमा कंपनियां

र्यावरण, सामाजिक और शासन (ईएसजी) का उपयोग आज दुनिया भर में व्यावसायिक तौर-तरीकों को नया स्वरूप दे रहे है

जयपुरDec 26, 2024 / 01:06 am

Narendra Singh Solanki

भारतीय जीवन बीमा क्षेत्र में निवेश से संबंधित निर्णयों में पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ईएसजी) का उपयोग आज दुनिया भर में व्यावसायिक तौर-तरीकों को नया स्वरूप दे रहे हैं और ऐसे माहौल में भारत अधिक सस्टेनेबल भविष्य में योगदान देने के लिए काफी बेहतर स्थिति में है। भारतीय बाजार का बड़ी तेजी से विस्तार हो रहा है और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत विश्व स्तर पर सस्टेनेबिलिटी की मुहिम में एक प्रमुख देश के रूप में उभर रहा है। भले ही जीवन बीमा सहित अलग-अलग क्षेत्रों में ईएसजी सिद्धांतों को शामिल करने का चलन बढ़ा है, फिर भी भारत में ईएसजी से जुड़े अभ्यास को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिए विकास की काफी गुंजाइश है। नियामक एजेंसियों के बढ़ते दबाव और जिम्मेदार निवेश की लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए, भारत की बैंकिंग एवं इंश्योरेंस इंडस्ट्री ईएसजी सिद्धांतों को अपनी मुख्य रणनीति का हिस्सा बनाकर दूसरों को राह दिखाने के लिए तैयार है। यह दौर बेहद महत्वपूर्ण है, जो निवेश करने के तरीके पर नए सिरे से विचार करने का अवसर प्रस्तुत करता है, जिसमें आर्थिक लाभ तथा पर्यावरण एवं समाज के प्रति जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना और सतत विकास के नये प्रतिमान को आकार देना शामिल है।

भारतीय कंपनियों में ईएसजी को अपनाने की पहल

एजेस फेडरल लाइफ इंश्योरेंस के चीफ इंवेस्टमेंट ऑफिसर एस.पी.प्रभु का कहना है कि आज अलग-अलग क्षेत्र के उद्योगों से जुड़े भारतीय निगम बड़ी तेजी से ईएसजी मानकों को अपना रहे हैं। बीमा व्यवसाय, खास तौर पर जीवन बीमा ने इस बात को समझा है कि ईएसजी से संबंधित चिताओं को निवेश निर्णयों में शामिल करना लंबे समय के लिए बेहद मूल्यवान है। हालांकि, जोखिम और रिटर्न को संभालना इस क्षेत्र के लिए हमेशा से चिंता का विषय रहा है, परंतु यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि ईएसजी से जुड़ी पहल सस्टेनेबल तरीके से विकास के सभी पहलुओं की रूपरेखा प्रदान कर सकती है।

जिम्मेदार तरीके से निवेश: एक नया स्टैंडर्ड

देश और दुनिया में नैतिक निवेश की बढ़ती मांग को देखते हुए, कई भारतीय जीवन बीमा कंपनियां ऐसे फ्रेमवर्क विकसित कर रही है, जिनमें सस्टेनेबिलिटी को ज्यादा अहमियत दी जाती है। उदाहरण के लिए, वित्त-वर्ष 2022-23 में कुछ कंपनियों ने रिस्पांसिबल इन्वेस्टिंग फ्रेमवर्क को लागू किया, जो उनके पूरे निवेश पोर्टफोलियो पर लागू होते हैं। आमतौर पर ये फ्रेमवर्क मुख्य रूप से तीन बातों: यानी विवादित गतिविधियों को बाहर करना, निवेश से जुड़े निर्णयों में ईएसजी के घटकों को शामिल करना और निवेश प्राप्त करने वाली कंपनियों के साथ सक्रिय भागीदारी पर आधारित होते हैं। इस तरह की नीतियों में दुनिया भर में अपनाये गए सबसे बेहतर तरीकों को शामिल किया जाता है। साथ ही, इससे यह भी जाहिर होता है कि ये कंपनियां बड़े लक्ष्य के साथ अपने सस्टेनेबल पोर्टफोलियो में सालाना निवेश बढ़ाने के संकल्प पर कायम हैं। इस तरह के फ्रेमवर्क लंबे समय में सस्टेनेबिलिटी से जुड़े लक्ष्यों का समर्थन करने वाले उद्यमों में निवेश को ज्यादा अहमियत देते हैं। साथ ही, ईएसजी के नजरिये से उच्च जोखिम वाली संस्थाओं से संपर्क को सक्रिय रूप से सीमित करते हैं।
निवेश पोर्टफोलियो में ईएसजी को शामिल करना

निवेश पोर्टफोलियो में ईएसजी से जुड़े घटकों को शामिल करना पारंपरिक रणनीतियों से काफी अलग है, जिनमें मुख्य रूप से आर्थिक रिटर्न पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। जीवन बीमा उद्योग की बात की जाए, तो इसमें ईएसजी के प्रति जागरूक रहकर किए गए निवेश में संभावित कंपनियों के पर्यावरण पर प्रभाव, सामाजिक जिम्मेदारी और उसकी प्रशासनिक प्रक्रियाओं का आकलन करना शामिल है। यह तकनीक खास तौर पर उन बीमा कंपनियों के बीच लोकप्रिय हो रही है, जो लंबे समय में सस्टेनेबल तरीके से किए गए निवेश के फायदों को अच्छी तरह समझते हैं। उदाहरण के लिए, अक्सर ईएसजी की कसौटी पर बेहतरीन प्रदर्शन वाले संगठनों के बारे में यह माना जाता है कि समय के साथ उनका जोखिम-समायोजित रिटर्न बेहतर होता है। ईएसजी से जुड़े घटकों को ज्यादा अहमियत देने वाली जीवन बीमा कंपनियां न केवल खुद के जोखिम (जैसे कि विनियामक जांच या प्रतिष्ठा को नुकसान) को कम करती हैं, बल्कि वे ऐसे पॉलिसीधारकों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं, जो नैतिक तरीके से निवेश के अवसरों में तेजी से रुचि लेते हैं।

संचालन में पर्यावरण संबंधी पहल

निवेश तकनीकों के अलावा, कई जीवन बीमा कंपनियां पर्यावरण पर अपने प्रभाव को कम करने के लिए काम कर रही हैं। ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) प्रोटोकॉल जैसी पहलों से व्यवसायों के लिए अपने कार्बन उत्सर्जन का आकलन करना और उनकी भरपाई के लिए प्रयास करना संभव हो पाता है। ऊर्जा के उपयोग, व्यावसायिक यात्रा और अन्य प्रक्रियाओं से होने वाले उत्सर्जन पर नजर रखने से, बीमा कंपनियों को पर्यावरण पर अपने प्रभाव को कम करने के संबंध में व्यावहारिक जानकारी मिलती है। कई कंपनियां अपने मुख्यालयों और आउटपोस्टों पर सस्टेनेबिलिटी से जुड़े उपायों को अपना रही हैं। पेड़ लगाने की मुहिम के आयोजन से लेकर कचरे को कम करने और संसाधनों के पुनः उपयोग को बढ़ावा देने तक, इन पहलों से पर्यावरण की हिफाजत करने के अटल इरादे की झलक दिखाई देती है। जीवन बीमा कंपनियां अपने संचालन कार्यों को ईएसजी सिद्धांतों के साथ जोड़कर अधिक सस्टेनेबल भविष्य में योगदान देती है, साथ ही वे कॉर्पोरेट जिम्मेदारी को ज्यादा अहमियत देने वाले पॉलिसीधारकों एवं भागीदारों के साथ अपने नाते को भी और मजबूत बनाती हैं।

ग्राहकों पर केंद्रित इनोवेशन: ईएसजी का एक प्रमुख घटक

जीवन बीमा इंडस्ट्री में ग्राहकों को सबसे ज्यादा अहमियत देने का नजरिया भी ईएसजी रणनीतियों का एक बेहद महत्वपूर्ण घटक है। जीवन बीमा कंपनियां डिजिटल तकनीकों और स्वयं-सेवा प्लेटफार्म को अपनाकर अपने ऑपरेशनल फुटप्रिंट्स को कम करते हुए ग्राहकों से संपर्क को बेहतर बना रही हैं। उदाहरण के लिए, कुछ व्यवसायों ने व्हाट्सएप को एक संचार चैनल के रूप में इस्तेमाल किया है, जिसमें ऑप्ट-आउट मेकैनिज्म का उपयोग किया जाता है, जिससे ग्राहकों के लिए अधिक प्रभावी ढंग से जुड़ना संभव होता है। यह बदलाव सही मायने में संचार की सुविधाजनक एवं सस्टेनेबल तकनीकों की बढ़ती इच्छा का परिणाम है। इसी तरह, एआई पर आधारित चैटबॉट जैसी तकनीकों ने ग्राहक सेवा के मायने को बदल दिया है। मोबाइल ऐप्स और ग्राहक पोर्टलों को लगातार अपडेट करने के साथ-साथ इस तरह की कोशिशों ने इस क्षेत्र में डिजिटल बदलाव को बढ़ावा दिया है, जिसकी वजह से ग्राहकों के कंपनी के साथ जुड़े रहने की दर और उनकी संतुष्टि के स्तर में भी बढ़ोतरी हुई है।

निरंतरता की चुनौती: ईएसजी से जुड़े लक्ष्यों के लिए डेटा का लाभ उठाना

निरंतरता या वह दर जिस पर पॉलिसीधारक पहले साल के बाद अपनी बीमा पॉलिसियों को फिर से रिन्यू करते हैं, जीवन बीमा कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक है। कंपनियां ग्राहकों की पॉलिसीयों में चूक की संभावना का पहले से अनुमान लगाने के लिए डेटा एनालिटिक्स मॉडल का उपयोग कर सकती है और उन्हें रोकने के लिए अपनी ओर से प्रयास कर सकती हैं। वर्तमान में इस तरह के मॉडलों की सटीकता 82 फीसदी तक पहुंच गई है, जिससे बीमा कंपनियों को लक्ष्य के अनुरूप संचार रणनीतियों को लागू करने में मदद मिली है। उच्च जोखिम वाले पॉलिसीधारकों को सही समय पर एसएमएस रिमाइंडर भेजने, कॉल करने तथा पत्र भेजने से पॉलिसी को रिन्यू कराने की दरों में जबरदस्त सुधार हुआ है और इस तरह कुछ बीमा कंपनियों के लिए रिन्यूअल कलेक्शन की दर 84 फीसदी तक पहुंच गई है। इस तरह के डिजिटल और डेटा पर आधारित रणनीतियों को पूरे ईएसजी फ्रेमवर्क में शामिल करने से ग्राहकों को सबसे ज्यादा अहमियत देने और संचालन में कुशलता के महत्व को बल मिलता है, जो व्यवसाय में सस्टेनेबल अभ्यास के प्रमुख स्तंभ हैं।
ईएसजी को शामिल करने से जुड़ी चुनौतियां और अवसर

हालांकि ईएसजी-केंद्रित निवेश के कई फायदे है, लेकिन इसमें कुछ खामियां भी हैं। स्टैंडर्ड ईएसजी डेटा और रेटिंग का अभाव एक बड़ी बाधा है, जिससे विसंगतियां पैदा हो सकती है और तुलना करना कठिन हो सकता है। हालांकि, भारत में नियामक निकायों की ओर से इन समस्याओं को दूर करने के लिए नए मानदंडों को लागू किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक सुसंगत और भरोसेमंद ईएसजी फ्रेमवर्क तैयार हुआ है।वित्तीय प्रदर्शन पर संभावित अल्पकालिक प्रभाव भी एक और समस्या है। ईएसजी सिद्धांतों को प्राथमिकता देने वाली कंपनियों को काफी अग्रिम निवेश की आवश्यकता हो सकती है, जिसका असर अल्पकालिक परिणामों पर पड़ सकता है। फिर भी, लंबे समय में मिलने वाले फायदे— जैसे कि अधिक प्रतिष्ठा, कम विनियामक चिंताएं और बेहतर वित्तीय प्रदर्शन— शुरुआती व्यय से कहीं बढ़कर हैं।

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