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मुंबई

Maharashtra News: बचपन में रोटी के लिए किया संघर्ष, खाने में खाते थे महुआ के फूल; अब बने अमेरिका में साइंटिस्ट

भास्कर हलामी एक आदिवासी समुदाय में पले-बढ़े भास्कर का बचपन आम बच्चों जैसा बिल्कुल भी नहीं था। भास्कर की एक सफल वैज्ञानिक बनने की यात्रा काफी बड़ा बाधाओं से भरी रही। आदिवासी समुदाय में पले-बढ़े भास्कर हलामी आज अमेरिका में एक सीनियर साइंटिस्ट हैं। हलामी अपने गांव के पहले ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी होल्डर हैं।

मुंबईNov 13, 2022 / 04:24 pm

Siddharth

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कहते है अगर कुछ करने की ठान लो तो सपने भी सच होते हैं। ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के एक सुदूर गांव में अपना बचपन बिता चुके भास्कर हलामी (Bhaskar Halami) ने कर दिखाया हैं। बचपन में एक समय के खाने के लिए संघर्ष करने वाले भास्कर हलामी आज अमेरिका में एक सीनियर साइंटिस्ट हैं। उनके संघर्ष की कहानी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणादायक है।
महाराष्ट्र में एक आदिवासी समुदाय में पले-बढ़े भास्कर हलामी अब अमेरिका के मेरीलैंड में बायोफार्मास्युटिकल कंपनी सिरनामिक्स इंक के अनुसंधान और विकास खंड में एक सीनियर साइंटिस्ट हैं। वह साइंस ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और पीएचडी करने वाले चिरचडी गांव के पहले शख्स हैं।
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महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए ये सच में गौरवशाली पल ही है कि देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भारतीय अपना परचम जोर-शोर से लहरा रहे हैं। भास्कर हलामी का जीवन इस बात का एक उदाहरण है कि कोई भी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ क्या हासिल नहीं कर सकता है।
बचपन में रोटी के लिए संघर्ष: बता दें कि भास्कर हलामी ने मीडिया से बात करते हुए अपने बचपन के शुरुआती दिनों को याद किया कि किस प्रकार उनका पूरा परिवार बहुत थोड़े में गुजारा करता था। 44 साल के वैज्ञानिक ने बताया कि उन्हें एक समय के खाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था। उनके परिवार के पास जो छोटा खेत था उसमें कोई फसल नहीं होती थी और कोई काम नहीं होता था। भास्कर हलामी ने कहा कि हम महुआ के फूल को पकाकर खाते थे, जो खाने और पचाने में बिल्कुल आसान नहीं होते थे। हम परसोद (जंगली चावल) जुटाते थे और पेट भरने के लिए इस चावल के आटे को पानी में पकाते थे। यह केवल हमारी बात नहीं थी, बल्कि गांव के 90 फीसदी लोगों के लिए जीने का यही जरिया होता था।
गांव के पहले पीएचडी होल्डर: भास्कर हलामी ने एक से चार क्लास तक की स्कूली शिक्षा कसनसुर के एक आश्रम स्कूल में की और छात्रवृत्ति परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने यवतमाल के सरकारी विद्यानिकेतन केलापुर में 10 तक पढ़ाई की। गढ़चिरौली के एक कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त करने के बाद भास्कर हलामी ने नागपुर में विज्ञान संस्थान से रसायन विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। साल 2003 में भास्कर हलामी को नागपुर में प्रतिष्ठित लक्ष्मीनारायण इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (LIT) में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया।
भास्कर हलामी ने महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग यानी एमपीएससी की परीक्षा पास की, लेकिन हलामी का पूरा ध्यान रिसर्च पर बना रहा और उन्होंने अमेरिका में पीएचडी की पढ़ाई की तथा डीएनए और आरएनए में बड़ी संभावना को मद्देनजर रखते हुए उन्होंने अपने रिसर्च के लिए इसी सब्जेक्ट को चुना। हलामी ने मिशिगन टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। बता दें कि भास्कर हलामी अपनी सफलता का क्रेडिट अपने माता-पिता को देते हैं, जिन्होंने उनकी शिक्षा के लिए कड़ी मेहनत की।

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