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सोशल मीडिया के लिए संयम है समय की दरकार

सोशल मीडिया के फायेद और नुकसान पर संगोष्ठी में हुई चर्चा

बैंगलोरJan 27, 2025 / 12:56 am

Bandana Kumari

राजस्थान पत्रिका, बेंगलूरु संस्करण के 30 वें स्थापना दिवस पर संगोष्ठी

तकनीक के साथ हमेशा सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों पहलू जुड़े होते हैं। मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के फायदे के साथ नुकसान भी हैं। बच्चों को संस्कार देने और उन्हें तकनीक या सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से बचाने में बड़े-बुजुर्गों व अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। तकनीक का उपयोग हम किस तरह करते हैं, इस पर ही उसका सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम निर्भर करता है। विकास की राह पर आगे बढ़नेे के लिए बदलती तकनीक के साथ कदमताल जरूरी है मगर उसके दुष्प्रभावों से युवा पीढ़ी को बचाने के लिए सजगता भी जरूरी है। सकारात्मक पहलुओं का अनुसरण करना होगा। यह बातें वक्ताओं ने राजस्थान पत्रिका, बेंगलूरु संस्करण के 30 वें स्थापना दिवस पर मागडी रोड के कर्नाटक पटेल भवन में मोबाइल और सोशल मीडिया के दौर में संस्कारों की महत्ता विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही। वक्ताओं ने कहा कि खुद अच्छे संस्कारों का अनुकरण करके ही भावी पीढ़ी को संस्कारित किया जा सकता है। सोशल मीडिया व मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते वक्त बच्चों पर खास नजर रखनी चाहिए। संगोष्ठी में विभिन्न समाजों और संस्थाओं के पदाधिकारियों ने बच्चों में मोबाइल फोन के उपयोग और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर खुलकर अपने विचारों को साझा किए।
ये भी रहे मौजूद कार्यक्रम में राजस्थान राजपूत संघ के अध्यक्ष सुजान सिंह भाटी, संरक्षक जब्बर सिंह दहिया, राजपुरोहित संघ के सहसचिव ईश्वर सिंह राजपुरोहित, कोषाध्यक्ष आशु सिंह डोणी, रमेश विराणा, मीठालाल राजपुरोहित, तेरापंथ सभा, गांधीनगर के अध्यक्ष पारसमल भंसाली, केवलचंद सालेचा, कांतिलाल गुलेच्छा, राजाराम आंजणा पटेल संघ के अध्यक्ष दुर्गाराम पटेल, देवासी समाज के अध्यक्ष गोपाल देवासी, उपाध्यक्ष रामाराम देवासी आदि भी मौजूद रहे। स्वागत और धन्यवाद ज्ञापन राजस्थान पत्रिका बेंगलूरु के संपादकीय प्रभारी कुमार जीवेंद्र झा और संचालन समाचार संपादक राजीव मिश्रा ने किया।
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खुद पर निर्भर उपयोग

जैसे डोर पतंग को थामे रखती है, ठीक उसी तरह संस्कारों की डोर बच्चों के अभिभावक थामे रखते हैं। बच्चे बड़ों का अनुसरण करते हैं। ऐसे में बड़ों को वैसे संस्कार रखने होंगे, जिससे बच्चों में बेहतर संस्कारों का निर्माण हो सके। सोशल मीडिया से आर्थिक सुदृढ़ता बढ़ी है। घंटों का काम मिनटों में संभव हो जाता है। आज के दौर में सोशल मीडिया का प्रयोग किस रूप में करना है, यह खुद पर निर्भर करता है। बच्चों को सकारात्मक तौर पर सोशल मीडिया और मोबाइल के उपयोग के लिए जागरूक करना चाहिए। – बिन्दु रायसोनी, पूर्व अध्यक्ष, जीतो बेंगलूरु नार्थ लेडीज विंग
महीने में एक दिन मोबाइल से रहें दूर

आज के दौर में सोशल मीडिया से दूरी रखना संभव नहीं है। जिस तरह उपवास रखते हैं, उसी तरह मोबाइल फोन से महीने में एक दिन बच्चों को दूर रखा जाना चाहिए। घर के बड़े-बुजुर्ग बच्चों से बात करें। आज की गतिविधियों को जानें और कल की गतिविधियों के बारे में प्रत्येक सदस्य आपस में संवाद करें। बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें। अभिभावकों के बच्चों से घुल-मिल कर रहने से ही उनमें संस्कार विकसित होंगे और आगे बढ़ने में मदद मिलेगी । – दिनेश खिंवेसरा, पूर्व अध्यक्ष, जैन युवा संगठन
दुष्प्रभावों से बचाएगा संयम और अनुशासन

भारत संस्कारों की भूमि है। सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग करने से इसके दुष्प्रभावों से बच सकते हैं। खुद को संयम और अनुशासन में रखेंगे, तभी आने वाली पीढ़ी को संस्कारित कर सकेंगे। इसके लिए संस्कारों, परंपराओं और पूर्वजों की जानकारी बच्चों के साथ साझा करें। संस्कृति की मूल से जोड़ने को बच्चों को ले जाकर पैतृक गांव दिखाएं। मोबाइल फोन या सोशल मीडिया के नकारात्मक के साथ ही सकारात्मक पहलू भी हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि हम उसका उपयोग कैसे करते हैं। यहां अभिभावकों को निगरानी रखने और बच्चों को जागरूक करने की जरूरत है ताकि वे इंटरनेट या सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग करें। खाना-खिलाते या काम करते वक्त बच्चों को मोबाइल फोन के उपयोग करने की लत न लगाएं। सामाजिक संस्थाओं को बच्चों के लिए संस्कारों की कक्षाएं चलानी चाहिए। – विमल कटारिया, अध्यक्ष, जीतो बेंगलूरु नार्थ
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सीमित उपयोग ही करने दें

बच्चों को मोबाइल फोन के उपयोग की आदत से बचाने के लिए उसके विकल्प में खिलौने देने चाहिए। मोबाइल लॉक कर या पासवर्ड लगा कर बच्चों के लिए मोबाइल फोन के उपयोग को सीमित किया जा सकता है। सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से बच्चों को बचाने के लिए नियमन की जरूरत है। इसके लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए।– कल्लाराम चौधरी, उपाध्यक्ष, राजाराम आंजणा पटेल संघ
सोशल मीडिया से बच्चों को रखें दूर

सोशल मीडिया के साथ नई क्रांति का जन्म हुआ। सोशल मीडिया आमजन की बात सरकार तक और सरकार की बात आमजन तक मिनटों में पहुंचाने के लिए एक सेतु का काम करती है। सोशल मीडिया के सकारात्मक के साथ ही नकारात्मक परिणाम भी हैं। साइबर अपराध, मानहानि, उत्पीड़न जैसी घटनाएं भी बढ़ी हैं। सोशल मीडिया और इंटरनेट से हानिकारक या आपत्तिजनक सामग्री को तकनीकी तौर पर हटाने का सरकार को प्रयास करना चाहिए। इसके लिए पारदर्शी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। माता-पिता की अनुमति के बिना सोशल मीडिया का प्रयोग न करने के साथ ही इंटरनेट चलाने का समय निर्धारित होना चाहिए। अश्लील सामग्री पर भी रोक लगानी होगी। दुष्प्रभावों से बचने के लिए स्व-नियमन और सतर्कता भी जरूरी है। – जवरीलाल लुणावत, पूर्व सरपंच लूणी व महामंत्री प्रवासी राजस्थानी कर्नाटक संघ
मोबाइल के उपयोग को आदत न बनाएं

संस्कारों के बिना शिक्षा का सदुपयोग नहीं हो सकता है। संस्कार आगे बढ़ने और एक-दूसरे से प्रेम करने का रास्ता दिखाते हैं। सकारात्मक विकास के लिए बच्चों को मोबाइल फोन का प्रयोग करने देने में बुराई नहीं है मगर मोबाइल फोन के उपयोग को आदत बनने से रोकने के लिए अभिभावकों को बच्चों के साथ बैठ कर आपसी संवाद करते रहना चाहिए। – चौधरी राम सिंह कुल्हरी, संयोजक, अंतराष्ट्रीय जाट समाज
चाइल्ड लॉक का करें उपयोग

सोशल मीडिया को सही रूप में लेने से इसके सकारात्मक परिणाम दिखेंगे। बच्चे व परिवार के किसी भी सदस्य के बाहर जाने पर सकुशलता की चिंता होती थी मगर आज मोबाइल फोन से घर बैठे किसी के बारे में भी जानकारी मिनटों में मिल जाती है। लोकेशन ट्रेस कर भी पता कर सकते हैं। जागरूकता से समस्याएं खत्म होगी। बच्चों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से बचाने को चाइल्ड लॉक सिस्टम लगाएं। यदि बड़े लोग किताबें पढ़ें और मोबाइल फोन का उपयोग कम करें तो बच्चे भी उनका अनुसरण करेंगे, जिससे वे संस्कारवान बन सकेंगे। – नेहा चौधरी, अध्यक्ष, भारतीय जैन संगठना लेडीज विंग, बेंगलूरु
जरूरत के हिसाब से बच्चे करें उपयोग

स्मार्टफोन से भले ही एक क्लिक में सारी सूचनाएं मिल जाती है मगर इसके दुष्प्रभाव भी अधिक होते हैं। जरूरत के हिसाब से मोबाइल फोन का प्रयोग करना चाहिए। बच्चों को मोबाइल फोन खरीदकर देने से बचें। बच्चों को संस्कारों से जोड़े रखने के लिए सप्ताह में एक बार सभी सदस्य साथ मिलकर बैठें और संस्कृति व परंपराओं की सीख बच्चों को दें। – महेंद्र मुणोत, सचिव, स्थानकवासी जैन संघ, बेंगलूरु सेंट्रल
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अभिभावकों को ही आना होगा आगे

संस्कार और शिक्षा एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। संस्कारों की शिक्षा से बच्चों में काफी परिवर्तन आता है और आगे वे बेहतर भविष्य का निर्माण करने में सक्षम हो जाएंगे। शिक्षा के साथ संस्कारों का भी सिंचन करना चाहिए। बच्चों को मोबाइल फोन व सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से बचाने को अभिभावकों को स्वयं आगे आना होगा। बच्चे मोबाइल फोन पर किस तरह की सामग्री देख रहे हैं, इस पर कड़ी नजर रखनी होगी।- भवराज राजपुरोहित, अध्यक्ष, बेंगलूरु राजपुरोहित संघ
अनुचित सामग्री के खिलाफ उठाएं आवाज

सोशल मीडिया सूचनाओं और ज्ञान का सशक्त माध्यम बन गया है। एक क्लिक में शिक्षा, स्वास्थ्य और तमाम काम की चीजों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और घर बैठे महाकुंभ भी देख सकते हैं। बिना कहीं गए भी वर्चुअल बैठक कर समय की बचत कर सकते हैं। पुरुष व महिलाओं को बराबर बच्चों में संस्कार विकसित करने की जिम्मेदारी उठानी होगी। सोशल मीडिया पर बच्चों के लिए अनुचित सामग्री को रोकने के लिए आवाज उठाएं। सही चीजों का सोशल मीडिया से अनुसरण करें। स्वयं पर नियंत्रण रख समाज को दुष्परिणामों से बचाया जा सकता है। – वीणा बैद, पूर्व महामंत्री, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल
बच्चों को करें जागरूक

एक-दूसरे को जोड़े रखने को सोशल मीडिया की उपयोगिता बढ़ी है। मानसिकता को बदलने से चीजें सकारात्मक दिखेगी। सोशल मीडिया के उपयोग करने व देखने का नजरिया अच्छा होना चाहिए। सोशल मीडिया ने कई लोगों की छिपी हुई प्रतिभा को उभारने और मंच देने का काम किया है। बच्चों के साथ बड़े – बुजुर्गों को बैठने के साथ ही उन्हें संस्कारों की जानकारी देनी चाहिए। सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव के बारे में बताकर भी बच्चों को जागरूक करना चाहिए। – सिद्धार्थ बोहरा, महामंत्री, कांठा प्रांत जैन ट्रस्ट
गलत-सही का फर्क समझाएं

गर्भ से ही संस्कारों का बीजारोपण होता है और वही बच्चाें में वट वृक्ष बनकर खिलता है। आज के दौर में संस्कार और सोशल मीडिया महत्वपूर्ण हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे भी हैं। कोरोना काल में सोशल मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रतिभाओं को उभारने का काम किया। बच्चों की जिद ना बढ़े, इसके लिए शुरूआत से ही फरमाइशों के लिए ना कहने की आदत डालें। गलत और सही चीजों की जानकारी देकर जागरूक करें। सुसाइड समस्या का समाधान नहीं है, इसकी सीख जरूर दें। – बिंदु मेहता, भारतीय जैन संगठना लेडीज विंग, बेंगलूरु
बच्चों के लिए उम्र सीमा का बंधन हो

सोशल मीडिया को सकारात्मक रूप में लेना चाहिए। ब्रांडिंग या जन संपर्क के लिए यह एक अच्छा माध्यम है मगर बच्चों के लिए मोबाइल फोन उपयोग करने की उम्र सीमा होनी चाहिए ताकि वे सही और गलत की परख करना सीख सकें और मोबाइल फोन व सोशल मीडिया के दुष्परिणाम से अपने जीवन को बचा सकें। –प्रकाश विश्वकर्मा, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर

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