तालिबान ने अफगानिस्तान में पिछले कुछ समय में 200 से अधिक सुरक्षा बल के जवानों को मार डाला है। 2017 में तालिबान की गतिविधियां जरूर कम रहीं जिससे कयास लगाए जाने लगे थे कि वह कमजोर पड़ रहा है लेकिन 2018 की शुरुआत से ही तालिबान एक नई मजबूती के साथ सामने आया है। उसके हमलों से एक बात साबित हो चुकी है कि वह अब भी अफगानिस्तान के एक बड़े हिस्से पर काबिज है और उसको मिटाना आसान नहीं है। फिलहाल जिस तेजी और युद्धनीति के साथ तालिबान अपने हमलों को अंजाम दे रहा है, उसके पूरी तरह से खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। असल में तालिबान ने अफगानिस्तान के ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पहुँच मजबूत की है। पिछले एक सप्ताह में तालिबान के अलग-अलग हमलों में 200 से अधिक पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान मारे जा चुके हैं।
अमरीकी सेना की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अफगान सरकार का देश के 56% हिस्से पर प्रभावी नियंत्रण है। बाकी हिस्से तालिबान और उसकी सहयोगी मिलिशिया के अधीन हैं। लेकिन जानकर अमरीकी सेना के दावों का खंडन कर रहे हैं। उनका कहना है कि जमीन पर हकीकत कुछ और है। तालिबान अभी भी बहुत मजबूत है। बता दें कि अभी भी सूर्यास्त के बाद गजनी और काबुल जैसे शहरों के बाहर सेना की संगठित टुकड़ी भी पेअर रखने की हिम्मत नहीं कर पाती। अफगानिस्तान के बहुत से जिले ऐसे हैं जहां सरकार का नियंत्रण सिर्फ सरकारी दफ्तरों और सैन्य बैरक तक सीमित है। कई इलाकों के पूरे जनजीवन पर तालिबान का नियंत्रण है।
अफगानिस्तान से तालिबान को मुक्त कराने के लिए अमरीका ने लम्बी लड़ाई लड़ी। 2014 में अमरीका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया। तब अमरीका ने कहा था कि अब तालिबान इतना मजबूत नहीं रहा कि वह कई बड़ा खरता बन सकता है। लेकिन बीते दिनों तालिबान के एक के बाद एक हमलों ने अमरीकी दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पूरे विश्व में सवाल उठ रहे हैं कि क्या अमरीका ने तालिबान को लेकर गलत दावा किया और दुनिया को गुमराह किया।।
तालिबान अमरीका के लिए हाल के दिनों में सबसे बड़ा दुश्म बन कर उभरा है। तालिबान को मिटा देना अमरीका की वर्षों से नीति रही हैए लेकिन अब वही नीति उसके लिए सर दर्द बनती जा रही है। अफगान संघर्ष में अब तक 2,200 अमरीकी नागरिकों की मौत हो चुकी है और लगभग 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। पुनर्वास और विकास कार्यों में भी बड़ी रकम खर्च की गई है। बताया जा रहा है कि पूरी कवायद के पीछे अमरीका का उद्देश्य इतना था कि दुनिया में यह संदेश जाए कि आतंक के खिलाफ अमरीका प्रतिबद्ध है और वह तालिबान को नेस्तनाबूंद कर के छोड़ेगा। फिलहाल सूरत-ए-हाल यह है कि तालिबान अमरीका के लिए नासूर बन गया है।