सेना के जुल्म और युवाओं पर ज्यादती से असंतोष बढ़ रहा है। इस बीच, नवंबर में 24 वर्षीय बलूच युवक मोला बख्श की पुलिस हिरासत में मौत से आक्रोश फैल गया। 19 दिसंबर को बलूच यक जेहती कमेटी (बीवाइसी) की अगुवाई में लोगों ने इस्लामाबाद के लिए लॉन्ग मार्च निकाला। बीवाइसी के मुताबिक लाठीचार्ज में घायलों में महिलाएं भी हैं।
कार्यवाहक पीएम अनवारुल हक काकर ने कहा कि बलूच प्रदर्शनकारियों की शिकायतों का समाधान करने के लिए मंत्री फवाद हसन की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। जिन लोगों ने कानून का उल्लंघन नहीं किया है उन्हें रिहा कर दिया जाएगा।
पाकिस्तान में सिंधुदेश की मांग फिर जोर पकडऩे लगी है। यह आंदोलन पिछले सात दशक से चल रहा है। बलूचिस्तान की तरह सिंधुदेश के लोगों पर भी पाकिस्तान की सेना पर लगातार दमन के आरोप लगते रहे हैं। सिंधु देश के लिए प्रदर्शन में बलूचिस्तान के अलावा सिंध और पंजाब प्रांत के लोग भी शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सिंध प्रांत में अवैध तरीके से लोगों को घुसाया जा रहा है, जिससे नौकरी के अवसर कम हो गए। उनके अधिकारों को कुचला जा रहा है और प्राकृतिक संसाधनों को लूटकर पंजाब की सेना और सरकार को भेजा रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए जे सिंध फ्रीडम मूवमेंट (जेएसएफएम) लगातार प्रदर्शन कर रही है। जेएसएफएम सियासी दल भी है, जो सिंधु देश की मांग करती रही है।
सिंधुदेश आंदोलन की शुरुआत विवादित ‘वन यूनिट प्लान’ से हुई। साल 1950 में जब पाकिस्तान का केंद्रीकरण हो रहा था, तब सिंध, बलूचिस्तान, पाकिस्तान पंजाब और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांतों (एनडब्ल्यूएफपी) को एक यूनिट में पुनर्गठित किया गया। 1970 में जनरल याह्या खान के सेना की कमान संभालने तक अत्यधिक केंद्रीकरण का यह निरंकुश कदम जारी रहा। सिंध के लोग इस दौर को अपने इतिहास का सबसे काला युग मानते हैं क्योंकि उस वक्त यह प्रांत पूरी तरह से पाकिस्तानी पंजाबियों के प्रभुत्व में आ गया था। फिर उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्र भाषा बनाए जाने से स्थिति और खराब हो गई, क्योंकि सिंध के लोगों में धारणा बन गई कि उनकी संस्कृति खतरे में है।