हालांकि पहले के अनुभव के आधार पर फिर से ये कहा जा सकता है कि इस कदम से अमरीका के अकेले पड़ने की पूरी संभावना है। वहीं दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र ( United Nation ) की साख पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।
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आपको बता दें कि 2015 में अमरीका और ईरान के बीच परमाणु समझौते ( Nuclear Deal ) हुए थे, जिसके बाद से ईरान पर लगे प्रतिबंधों में थोड़ी नरमी आई थी, लेकिन 2016 में सत्ता परिवर्तन होने के साथ ही जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति ( President Donald Trump ) बने तो उन्होंने इस समझौते को रद्द कर दिया। ट्रंप प्रशासन ने दो साल पहले ही अमरीका को इस समझौते से अलग कर लिया और ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए।
UN से अमरीका को लग चुका है झटका
आपको बता दें कि अमरीका ने ईरान पर कई तरह के प्रतिंबध लगाए थे, जिसमें से ईरान के हथियार रखने पर अनिश्चितकाल के लिए पाबंदी भी शामिल था। लेकिन पिछले सप्ताह इस मामले पर अमरीका को करारा झटका लगा। ऐसे में अब अमरीका ईरान पर फिर से पाबंदी लगाने के लिए कूटनीतिक रास्ते से आगे बढ़ना चाह रहा है।
इसी को लेकर अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ( US Secretary of State Mike Ponpio ) गुरुवार को न्यूयॉर्क जाने वाले हैं। पोंपियो न्यूयॉर्क में सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष से मिलेंगे और उन्हें अधिसूचित करेंगे कि अमरीका परमाणु समझौते को मान्यता देने वाले परिषद के प्रस्ताव पर ‘स्नैप बैक’ तरीका अपना रहा है।
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‘स्नैप बैक’ का मतलब ये है कि किसी समझौते में शामिल पक्ष संयुक्त राष्ट्र की ओर से पहले लगाए गए सभी प्रतिबंधों को फिर से लगाने की मांग कर सकते हैं। इतना ही नहीं, इस प्रक्रिया को वीटो पावर के जरिए रोका भी नहीं जा सकता है। आम तौर पर सुरक्षा परिषद ( UNSC ) के स्थाई सदस्य चाहे तो किसी भी समझौते या फैसले से असहमत होकर वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए उसे रोक सकता है।
अमरीका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को कहा था कि अमरीका संयुक्त राष्ट्र के सभी प्रकार के प्रतिबंधों को फिर से बहाल करने की मंशा रखता है। यह स्नैप बैक है। बता दें कि अमरीका के इस फैसले का सुरक्षा परिषद में व्यापक विरोध हो सकता है, क्योंकि 2015 के परमाणु समझौते से अमरीका खुद बाहर आया था। ऐसे में परिषद के सदस्यों का मानना है कि अमरीका के पास प्रतिबंध को फिर से बहाल करने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है।