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मेरठ

कारगिल विजय दिवस 2018: शहीद ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह की जांबाजी पर परमवीर चक्र देने की हुर्इ थी घोषणा, परिवार को आज भी सम्मान का इंतजार

कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 17 सैनिकों को मार गिराया था

मेरठJul 26, 2018 / 11:17 am

sanjay sharma

meerut

कारगिल विजय दिवस 2018: शहीद ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह की जांबाजी पर परमवीर चक्र देने की हुर्इ थी घोषणा, परिवार को आज भी सम्मान का इंतजार

मेरठ। कारगिल युद्ध में 17 पाकिस्तान जवानों को मौत के घाट उतारने वाले ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह के शहीद होने के बाद भी उनके परिजनों को सरकार से परमवीर चक्र का इंतजार है। उनकी बहादुरी को देखते हुए सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त परमवीर चक्र देने की घोषणा की थी। सरकार की वह घोषणा आज तक घोषणा ही रह गई। योगेंद्र के भाई सुशील बताते हैं कि उन्हें इसका मलाल ताउम्र रहेगा। योगेंद्र शहीद हुए तो मरणोपरांत उनको परमवीर चक्र देने की घोषणा सेना और सरकार की ओर से की गई थी, लेकिन उनकी जगह सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव को परमवीर चक्र दे दिया गया। सरकार ने इसके लिए उनके पास पत्र भी भेजा और खेद जताया कि दोनों के नाम एक होने के कारण ऐसी गल्ती हो गई है। योगेंद्र सिंह को भी जल्द ही परमवीर चक्र दिया जाएगा। शहीद योगेंद्र सिंह को मरणोपरांत सेना मेडल से नवाजा गया। सुशील बताते हैं कि उन्हें नहीं पता कि वह सेना की गलती रही या सरकार की।
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17 पाकिस्तानियों का मौत के घाट उतार शहीद हुए योगेंद्र

कारगिल की लड़ाई चल रही थी। जून 1999 में मेरठ के ऐतिहासिक कस्बे हस्तिनापुर के निवासी ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह की तैनाती जम्मू में थी। उनकी बटालियन 18 ग्रेनेडियर को कारगिल पहुंचने का आदेश मिला। योगेंद्र सिंह भी बटालियन के साथ कारगिल के लिए चल दिए। टाइगर हिल से दुश्मन को खदेड़ने में परेशानी आ रही थी। दुश्मन के पास हेवी इनफेंट्री गन के साथ मिसाइल गन थी। 18 हजार फिट की ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों ने ज्यादा नुकसान भारतीय सेना को यहीं से पहुंचाया। ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह ने अपने सात साथियों के साथ चोटी पर पहुंचकर पाकिस्तानी सैनिकों के बंकरों को नेस्तानाबूत कर दिया। योगेन्द्र ने पाकिस्तान के 17 जवानों कोे मौत के घाट उतार दिया। पांच जुलाई की शाम दुश्मन की जवाबी गोलीबारी में ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह शहीद हो गए।
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दुश्मन को मारकर घर आऊंगा या फिर मरकर

शहीद योगेंद्र सिंह की पत्नी उर्मिला देवी बताती हैं जब वो शहीद हुए तो बच्चे काफी छोटे थे। बेटा संदीप सात और दीपक चार साल का था। आखिरी पत्र लड़ाई के समय में ही बंकर से भेजा गया था। जिसमें उन्होंने लिखा था कि परेशान मत होना। मैं दुश्मन को मारकर आऊगा या फिर मरकर आऊंगा, लेकिन वो नहीं लौटे। गोलियों से छलनी उनका पार्थिव शरीर आया। ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह को शुरू से ही सेना में जाने का जज्बा था। एक भर्ती में फेल हुए तो उन्होंने दोबारा तैयारी शुरू कर दी। अपने छोटे भाई महिपाल सिंह को भी उन्होंने सेना में भर्ती कराया। लेकिन अफसोस कि भाई का जब नंबर आया तो कुछ दिन पहले ही वो शहीद हो गए। योगेंद्र सिंह के पूरे परिवार ने महिपाल से उनकी इच्छा पूरी करने को कहा। वह आजकल 18 ग्रेनेडियर दिल्ली में तैनात हैं।

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