ब्लैक फंगस के मरीजों में एंबिसोम यानि लाइपोसोमल एंफोटेरिसिन-बी इंजेक्शन दिया जाता है। ये इंजेक्शन किडनी पर तेजी से असर करते हैं, जो कि किडनी को घातक स्तर पर नुकसान पहुंचा रहा है। ब्लैक फंगस के मरीजों को लेकर चिकित्सकों ने इसे लेकर सावधानी बरतने की सलाह दी है। इजेक्शन देने के बाद ब्लैक फंगस के मरीजों को किडनी रोग विशेषज्ञ की देखरेख में रखा जा रहा है।
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योगी सरकार यूपी में विकसित करेगी ‘दवा एटीएम’ की व्यवस्था, सीएम योगी ने दिए यह निर्देश जिले में ब्लैक फंगस का संक्रमण अभी भी बढ़ता ही जा रहा है। बढ़ रहे केस स्वास्थ्य विभाग के लिए चिंता का कारण भी बने हुए हैं। मेरठ में 250 से ज्यादा मरीज मिल चुके हैं। इनमें से 18 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। मेडिकल कॉलेज में 125 से ज्यादा सक्रिय मामले हैं। ब्लैक फंगस से पीड़ित करीब 40 से अधिक मरीजों का ऑपरेशन किया जा चुका हैं। डॉ. राहुल भार्गव बताते हैं कि ब्लैक फंगस का संक्रमण जब दिमाग और शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाता है तो इसका इलाज ऑपरेशन और एंबिसोम यानि लाइपोसोमल एंफोटेरिसिन-बी इंजेक्शन ही संभव है।
मरीज को एक दिन छह इंजेक्शन दिए जाते हैं। एक इंजेक्शन में 50 मिली ग्राम डोज होती है, ऐसे में प्रतिदिन 300 एमएल डोज दी जाती है। यह इंजेक्शन चार से छह सप्ताह तक लगातार चलते हैं। यह शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा को बढ़ा देते हैं। यूरिक एसिड अगर बढ़ा होता है तो यह इंजेक्शन रोक दिए जाते हैं। ब्लैक फंगस के मरीजों का इलाज कर रहे चिकित्सक बेहद सावधानी बरत कर इंजेक्शन दे रहे हैं। जरा सी लापरवाही घातक साबित हो सकती है।