क्या है 1968 विवाद
1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर दुखी हुए। बाद में मदनमोहन मालवीय की इच्छा पर उन्होंने सात फरवरी, 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल से तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया। 1951 में यह तय किया गया कि यहां दोबारा कृष्ण मंदिर बनवाया जाएगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया था। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं।
1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी। मुस्लिम पक्ष को पास की जगह दे दी गई थी। आज जिस जगह मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है। वर्तमान में कोर्ट में जमीन के लेकर याचिका दी गई है, जिसमें इस बात के तहत 1968 में सेवा संघ द्वारा किए गए समझौते को गलत बताया गया है।
इनसेट वसीम रिजवी की अपील- तोड़े गए मंदिर वापस लाएं शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तोड़ गए मंदिर वापस दिलाने की मांग की है। उन्होंने पत्र में कहा है कि 1991 में कांग्रेस पार्टी की सरकार में ‘द प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट, 1991′ बनाया गया जिसमें यह कानून बना दिया गया कि 1947 के बाद जितने भी धार्मिक स्थल हैं, उनकी यथास्थिति बहाल रहेगी। ऐसे धार्मिक स्थलों का स्वरूप बदलने के लिए किसी भी तरह का कोई वाद किसी भी न्यायालय में दाखिल नहीं किया जा सकेगा। इस अधिनियम से अयोध्या के राम मंदिर प्रकरण को अलग रखा गया था। द प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट, 1991 एक विवादित अधिनियम है जो किसी एक धर्म के अधिकार और धार्मिक संपत्ति जो उनसे मुस्लिम कट्टरपंथी मुगल शासकों ने ताकत के बल पर छीन कर उस पर अपना धार्मिक स्थल (मस्जिद) बनवा दिए थे। वह सभी प्राचीन धार्मिक स्थल (मंदिर) भारतीय हिंदू धर्म के मानने वाले लोगों के थे। ये धार्मिक स्थल उन्हें वापस न मिलने पाए, इस अन्याय को सुरक्षा प्रदान करता है जो कि किसी एक धर्म विशेष के धार्मिक अधिकारों और धार्मिक संपत्तियों का हनन है।’