सुपरस्टार रजनीकांत बोले- मुख्यमंत्री बनने की अकांक्षा नहीं, मैं सिर्फ बदलाव चाहता हूं क्या है लोअर सर्किट शेयर बाजार में दो सर्किट ब्रेकर होते हैं- लोअर और अपर। इनमें अपर सर्किट (Upper Circuit) शेयर बाजार में तब लगाया जाता है, जब यह एक तय सीमा से ज्यादा बढ़ जाता है। सेबी की ओर से अपर सर्किट के लिए तीन स्थितियां- 10 फीसदी, 15 फीसदी और 20 फीसदी की निर्धारित की गई हैं। इसी तरह जब जब शेयर बाजार एक निर्धारित सीमा से ज्यादा गिरने लगे, तो लोअर सर्किट (Lower Circuit) लगाया जाता है। इसके लिए भी सेबी की ओर से 10 फीसदी, 15 फीसदी और 20 फीसदी की सीमा निर्धारित की गई है।
भाजपा में शामिल होकर बाेले ज्योतिरादित्य सिंधिया- भाजपा ने जनसेवा का मंच प्रदान किया क्यो लगाया जाता है सर्किट ब्रेकर? शेयर बाजार में सर्किट ब्रेकर लगाने का उद्देश्य शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव को रोकना होता है। देश में इसकी शुरुआत सेबी की ओर से 2001 में की गई थी। यह कुछ खास नियमों के तहत ही लगाए जाते हैं। एनएसई बेवसाइट के अनुसार अगर दोपहर 1 बजे के पहले शेयर बाजार 10 फीसदी बढ़ जाए या गिर जाए, तो नियम के अनुसार अपर सर्किट या लोअर सर्किट लगा दिया जाता है। ऐसे में ट्रेडिंग 45 के लिए रोकी जाती है। अगर दोपहर 1 बजे के बाद 10 फीसदी उतार या चढ़ाव देखा जाता है, तब कारोबार सिर्फ 15 मिनट के लिए ही बंद किया जाता है। इसी तरह 15 और 20 फीसदी के लिए भी नियम तय किए गए हैं।
काेलकाता: अमित शाह बोले- अल्पसंख्यकों को नागरिकता जाने का डर दिखाया जा रहा कब-कब लगा सर्किट ब्रेकर देश में पहली बार सर्किट ब्रेकर की व्यवस्था 28 जून 2001 को लागू की गई थी और पहली बार 17 मई 2004 को इसका इस्तेमाल किया गया था। इस दिन दो बार सर्किट ब्रेकर लगाया गया था। इसके 22 मई 2006, 17 अक्टूबर 2007 और 22 जनवरी 2008 को शेयर बाजार में सर्किट ब्रेकर (circuit breakers) लगाया गया।