अभावों में बीता था झोऊ का बचपन जब वह पांच साल की थी तब उनकी मां की मृत्यु हो गई। ऐसे में उनका बचपन बहुत कठिनाइयों भरा रहा। झोऊ ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की, लेकिन १६ साल की उम्र में उन्हें पढ़ाई छोडऩी पड़ी। आजीविका व दृष्टिहीन पिता का सहारा बनने के लिए उन्होंने नौकरी करने की सोची। इसके लिए वह शेनजेन चली गई। यहां उन्हें घडिय़ों के ग्लास बनाने वाली फैक्ट्री में ग्लास तराशने का काम मिल गया। यहां उन्होंने घडिय़ों के ग्लास बनाने के व्यापार को सीखा। इसके साथ ही वह शेनजेन यूनिवर्सिटी से पार्ट टाइम कोर्स करती रहीं।
इस्तीफा हुआ नामंजूर, कर दिया प्रमोशन वहां काम करने की कंडीशन बहुत खराब थी। यहां तीन माह काम करने के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा फैक्ट्री चीफ को दिया। उन्होंने इस्तीफे में नौकरी छोडऩे के कारण को इस तरह एक्सप्लेन किया कि मैनेजमेंट ने उनका इस्तीफा नामंजूर करते हुए उन्हें प्रमोशन दे दिया। इसके बाद वह तीन साल वहीं काम करती रहीं। इस दौरान उन्होंने काफी कुछ सीखा।
१९९३ में जब वह २२ साल की थी तो उन्होंने अपनी कंपनी शुरू करने की सोची। उन्होंने करीब तीन हजार डॉलर इकट्ठा कर लिए थे। इस राशि और अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर उन्होंने वॉच लेंसेज बनाने का काम शुरू कर दिया। उच्च क्वालिटी के वॉच लेंसेज होने के कारण कंपनी ने कस्टमर को अपील किया। वह कंपनी के छोटे से लेकर बड़े हर काम में इन्वॉल्व रहती थीं।
मोटोरोला ने दिया था पहला बड़ा ऑफर २००३ में उनके पास मोटोरोला कंपनी से कॉल आई कि वह उनके नए मोबाइल राजार वी३ के लिए ग्लास स्क्रीन बनाने में उनकी मदद करें। उस समय ज्यादातर मोबाइल स्क्रीन प्लास्टिक की होती थी। इस नए काम को करने के लिए झोऊ ने लेंस टेक्नोलॉजी कंपनी शुरू की। उनकी कंपनी उम्मीदों के अनुरूप ग्लास के ऊपर स्क्रैच रेसिस्टेंस कोटिंग बनाने में सफल हो गई। फिर उन्हें बड़ी-बड़ी मोबाइल कंपनियों का काम मिलने लग गया। झोऊ ने आज जो मुकाम हासिल किया है, उसके लिए उन्हें ‘क्वीन ऑफ मोबाइल फोन ग्लासेज’ कहा जाने लगा।