अगर आप उस एंप्लॉई को सुधरने की हिदायत देकर छोड़ रहे हैं तो कहीं ऐसा न हो कि वह समझे कि आप उसे आगे भी कभी कुछ नहीं कहने वाले। दूसरे एंप्लॉइज के लिए भी एक उदाहरण पेश करते हुए आप उसे एक निश्चित दिनांक तक सुधरने का अल्टीमेटम दे दें। इस दौरान उसके बर्ताव पर पूरी नजर रखें।
अक्सर एंप्लॉयर यह सोचकर इन एंप्लॉइज के बर्ताव को नजरअंदाज कर देते हैं कि समय के साथ इसमें बदलाव आ जाएंगे। लेकिन समस्या को नजरअंदाज करना उसे बढ़ाने का ही काम करता है। इसलिए अच्छा यह होगा कि ऐसे प्रॉब्लमेटिक एंप्लॉइज पर खास ध्यान दिया जाए। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि इनसे पूरे ऑफिस का वर्क कल्चर प्रभावित हो सकता है। इससे कंपनी की प्रोडक्टिविटी और एंप्लॉइज की कार्यशैली पर भी खराब प्रभाव पड़ता है।
कहीं ये साजिश तो नहीं?
कोई भी कदम उठाने से पहले पूरी जांच पड़ताल अवश्य कर लें। पहले उस एंप्लॉई के इस बर्ताव का असल कारण जरूर पता लगा लें। साथ ही समस्या किस कारण से उत्पन्न हुई इसका भी पूरा विश्लेषण कर लें। सही निर्णय लेने के लिए यह तैयारी जरूरी है वरना कहीं ऐसा न हो कि उस एंप्लॉई के खिलाफ ही कोई साजिश चल रही हो।
किसी भी बात के हाथ से निकल जाने से पहले ही आपको सही एक्शन लेना होगा। ज्यादा ढीला-ढाला रवैया अपनाए रखने से आपके ऑफिस की सकारात्मकता प्रभावित हो सकती है। किस विभाग में क्या समस्या चल रही है इसके बारे में पूरी तरह से जागरूक रहने के लिए समय-समय पर मीटिंग लेते रहना भी जरूरी है।
सारी शिकायतों और जांच पड़ताल के बाद भी एक ऐसा कदम है जिसे अक्सर एंप्लॉयर्स नजरअंदाज कर जाते हैं। वह कदम है आपसी बातचीत का। जिस भी एंप्लॉई की वजह से समस्याएं पैदा हो रही हैं, उससे स्पष्ट रूप से बात करें। हो सकता है कि उसे खुद के फैलाए समस्याओं के इस जाल की जानकारी न हो। एंप्लॉई के साथ बातचीत का सेशन सब लोगों के बीच में नहीं हो, यह सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात है।