एक योगी से हिन्दुत्व के सबसे बड़े पोस्टर बॉय बने इस सन्यासी की कहानी शुरू होती है उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल जिले के पंचूर गांव से। 5 जून 1972 को इस गाँव के रहने वाले आनन्द सिंह बिष्ट और सावित्री देवी के घर एक बच्चे का जन्म होता है। जिसका नाम अजय सिंह बिष्ट रखा गया। सात भाई बहनों में पाँचवे नंबर पर आने वाले अजय सिंह बिष्ट ने श्रीनगर के गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से गणित से बीएससी की। साल 1993 में वे गणित में एमएससी की पढ़ाई के दौरान गोरखपुर आए। ये अजय सिंह बिष्ट के जीवन का टर्निंग पॉइंट था। क्योंकि यही वो वक्त था जब वो गोरक्षपीठ के मठाधीश और महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आये और फिर अजय सिंह बिष्ट का उनका नाम और परिचय दोनों पुराना हो गया। उनका नया नाम योगी आदित्यनाथ और परिचय गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में दुनिया के सामने आया।
ऐसे बने अजय से आदित्यनाथ कहते हैं कि अजय सिंह बिष्ट ने जब पहली बार बड़े महाराज यानि अवैद्यनाथ जी से सन्यासी बनने की इच्छा ज़ाहिर की थी तो उन्होंने मना कर दिया था और घर वापस जाने को कहा। इस बीच उनके परिवार के लोग भी उन्हें मनाने और वापस ले जाने के लिए आये लेकिन अजय सिंह बिष्ठ नहीं माने। उन्होंने फिर महंत अवैद्यनाथ से सन्यासी बनने की इच्छा ज़ाहिर की। आख़िरकार 15 फरवरी 1994 को गोरखनाथ मंदिर प्रवास के दौरान अवैद्यनाथ ने उन्हें दीक्षा देकर अजय सिंह बिष्ट से योगी आदित्यनाथ बनाया।
राजनीति की दुनिया में कदम योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक अनुभव की शुरुआत वर्ष 1996 से शुरू होती है जब उन्होंने लोकसभा चुनाव में महंत अवेद्यनाथ के चुनाव का संचालन किया। वर्ष 1998 में महंत अवेद्यनाथ ने इन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया। और होने वाले लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी भी घोषित कर दिया। यही वो वक्त था जब योगी ने राजनीतिक की दुनिया में कदम रखा और महज़ 26 वर्ष की उम्र में सासंद बने।
बढ़ने लगी चर्चा और ख्याति योगी की ख्याति बढ़ने लगी और अपने बयानों से वे चर्चा में आने लगे। उनके ऊपर मुस्लिम विरोधी होने के साथ सांम्प्रदायिक भाषण देने का आरोप लगने लगे। गोरखपुर में हुए दंगे कर्फ्यू के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। मगर योगी अपने विचारों पर अडिग रहे। उन्होंने हिन्दू युवा वाहिनी और बजरंग दल जैसे संगठनों को मजबूती देते हुए प्रखर हिन्दुत्व को धार देनी शुरू की।
ऐसे बढ़ा राजनीतिक कद 2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी शीर्ष नेतृत्व से मतभेदों के चलते योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी से प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। इससे सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया बीजेपी सकते में आ गयी। आख़िरकार बीजेपी शीर्ष नेतत्व को झुकना पड़ा। पार्टी के इस निर्णय का फायदा दोनों को हुआ खुद पार्टी को भी और योगी को भी। योगी का राजनीतिक कद और पूर्वांचल में बीजेपी का जनाधार, दोनों बढ़ने लगा। वर्ष 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में लगातार जीत हासिल कर 42 वर्ष की उम्र में लगातार पांच बार सांसद होने का रिकार्ड भी बनाया।
2017 में संभाली यूपी की कमान साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की प्रचण्ड जीत के बाद पार्टी ने एक ने उत्तर प्रदेश में हिन्दुत्व के इस सबसे बड़े पैरोकार को यूपी की कमान सौंप दी। योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उस खुद योगी ने और सियासी पण्डितों ने शायद ही कल्पना की होगी कि ये शख्स इतिहास रचेगा और दोबारा सीएम पद की शपथ लेगा। लेकिन के योगी के राजनीतिक हठ योग का ही परिणाम है कि उन्होंने तमाम कीर्तिमानों को ध्वस्त कर आज नया इतिहास रचने जा रहे हैं।