परेशान करने लगी लू Summer Weather update: क्लाइमेट चेंज की वजह से मार्च 2022 के आधे महीने के बाद ही उत्तर पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों में लू चलने लगी। पिछले दो दशक में मार्च का महीना सबसे गर्म रहा। अमूमन मार्च के माह में यूपी सहित देश के कई हिस्सों में हल्की बारिश होती रही है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस वजह से तापमान बढ़ गया।
लू पर मौसम विज्ञानी की चेतावनी मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अप्रेल माह में लू की तीव्रता बढ़ेगी। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सीमा जावेद का कहना है कि इसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग है। इसकी वजह से अभी लू की फ्रीक्वैंसी और तीव्रता और बढऩे का अनुमान है।
झुलस गयीं गेहूं की बालियां मौसम का बदला मिजाज किसानों को नुकसान दे रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर गेहूं की फसल पर पड़ा है। पहले तो बारिश के कारण बुवाई काफी लेट हुई। मार्च-अप्रेल माह में गर्मी के तेवर के कारण गेहूं-जौ, चना,मटर, अरहर फलियों और बाली को काफी नुकसान पहुंचा है। गर्मी ज्यादा होने से बालियों के अंदर जो दाना था, उसका दूध सूख गया। इससे दाने छोटे हो गए हैं। इसका असर सीधा गेहूं के उत्पादन पर पड़ा है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो गेहूं को पकने के औसतन 25 से 30 डिग्री पारा अच्छा रहता है, लेकिन मार्च में ही पारा 33 के ऊपर चला गया।
घट गया उत्पादन कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बढ़ते तापमान से न केवल गेहूू की फसल का उत्पादन प्रभावित हुआ, बल्कि टमाटर, भिंडी, बैंगन, तरबूज आदि की फसलें भी प्रभावित हुई हैं। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है। कि जिन किसानों ने 15 नवंबर से पहले गेहूं की फसल बो दी थी। उनमें 10 फीसदी उत्पादन प्रभावित हुआ है। 15 नवंबर के बाद बोई गेहूं की बोई गई फसल में 25 फीसदी उत्पादन प्रभावित हुआ है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इस साल गेहूं के लिए 111.32 मिलियन टन के उत्पादन का अनुमान लगाया था। लेकिन माना जा रहा है यह घट सकता है।
यूपी सरकार ने इस साल सरकारी क्रय केंद्रों पर गेहूं खरीद का मूल्य 2015 रुपए प्रति कुंतल रखा है। लेकिन अभी तक सिर्फ 5176 क्रय केंद्र ही चालू हो पाए हैं। और अब तक सिर्फ 18 किसानों ने ही 94.65 मीट्र्रिक टन गेहूं ही बेचा है। इसकी वजह गेहूं की कटाई का देर से शुरू होना है। दूसरे फसल खेतों में ही सूख गयी है। प्रोडक्शन कम हुआ है।