लखनऊ. मंगलवार से प्रदेश भर में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में अचानक बढ़ोत्तरी कर दी गई। जिसके बाद से लखनऊ समेत अन्य जिलों में पेट्रोल 73.66 रुपए प्रति लीटर की दर से बिक रहा है। सोमवार रात को पेट्रोल में वैट जोड़ा गया था, जिसके बाद से पेट्रोल सीधा ढाई रुपए महंगा हुआ वहीं डीजल में 98 पैसे/लीटर की वृद्धि हो गई। प्रदेश सरकार ने यह वृद्धि अपना राजस्व बढ़ाने के लिए की है। इसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ेगा क्योंकि पेट्रोलियम रेट बढ़ने से रोज मर्रा में इस्तेमाल की जानी वाली चीजें भी महंगी होगी। वैसे पेट्रोल के रेट बढ़ने से सिर्फ यूपी में ही आम जनता की जेब में आग नहीं लगती बल्कि पूरे देश में इससे असर पड़ता है। वहीं सभी प्रदेशों के आंकड़े खंगाले जाए तो यूपी में पेट्रोल के रेट्स कई अन्य राज्यों के मुकाबले कम हैं तो कुछ के मुकाबले ज्यादा है।
ये भी पढ़ें- शिवपाल की पार्टी के साथ-साथ बसपा को लगा जोरदार झटका, इन बड़े नेताओं ने थामा भाजपा का दामन11 राज्यों से उत्तर प्रदेश में पेट्रोल के रेट्स कम- उत्तर प्रदेश में पेट्रोल के रेट्स करीब 15 राज्यों से ज्यादा हैं। वहीं 11 राज्यों से उत्तर प्रदेश में पेट्रोल के रेट्स कम हैं। पेट्रोल सबसे ज्यादा महंगा महाराष्ट्र में है, जहां वर्तमान में कीमत 77.07 रुपय प्रति लीटर है। तो सबसे सस्ता पेट्रोल अरुणाचल प्रदेश में बिकता है, जहां पेट्रोल का रेट 66.09 रुपए प्रति लीटर है। इस हसाब से पूरे देश में पेट्रोल रेट की दरों की लिस्ट उत्तर प्रदेश 12वें पायदान पर है। यानी यूपी पेट्रल की दरों के मामले में 13वां सबसे महंगा प्रदेश हैं।
ये भी पढ़ें- इन तरीकों को अपनाकर कर सकेंगे सस्ते पेट्रोल-डीजल की खरीदारी, होगी भारी बचतकैसे तय होता है रेट- ऑयल मार्केटिंग कंपनियों द्वारा तय की गई दरों में वैट और राज्य करों सहित कई दूसरे कर शामिल होते हैं। रोजाना बदलने वाली पेट्रोल की कीमतों में केंद्र सरकार का उत्पाद शुल्क और राज्य-कर लगाया जाता है। केंद्र सरकार द्वारा लगाया गया शुल्क स्थिर रहता है, जबकि राज्य कर अलग-अलग होते हैं। उदाहरण के लिए, यूपी में पेट्रोल पर लागू वैट की दर पेट्रोल पर 26.80 प्रतिशत है जबकि दिल्ली में 27 प्रतिशत है, वहीं गोवा में यह 15% वैट और 0.5% ग्रीन सेस लगता है। वैट की दल विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। यही कारण है कि विभिन्न राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमत भी अलग-अलग है। कई उपभोक्ताओं और कार्यकर्ताओं ने इस बात का विरोध किया है कि कर-दरें बहुत अधिक हैं, लेकिन व्यक्तिगत राज्यों ने अपनी कर-दरों का समर्थन करते हुए कहा है कि इस राजस्व की बहुत आवश्यकता है।