ये भी पढ़ें- भाजपा सांसद सत्यदेव पचौरी की सीएम योगी को चिट्ठी, कहा- मरीजों को नहीं मिल रहा इलाज, सड़क पर दम तोड़ रहे लखनऊ में चारबाग स्टेशन पर दूसरे राज्यों से 73 मीट्रिक टन ऑक्सीजन के टैंकर-कैप्सूल आ रखे थे। आला अफसर व विभागीय इंजीनियर उसे घेर कर खड़े थे। आक्सीजन ट्रांसफर करने के लिए उपकरण ढूंढते रहे। स्थानीय मैकेनिक का भी सहारा लिया,लेकिन समस्या का समाधान हो ही नहीं पा रहा था। क्योंकि समस्या तो कुछ और ही थी। इसका पता तब चला जब कपूरथला के पास चांदगंज में फायर, गैसेज का काम करने वाले रोहन को बुलाया गया। ऑक्सीजन सिलेंडर भेजने वाली फर्म का रोहन के पास फोन पहुंचा। वह रेलवे स्टेशन पहुंचा जहां वैगन खड़े थे। रोहन ने टैंकरों के पास जाकर देखा व जांच की। टैंकरों की क्षमताओं का आकलन किया तो समस्या समझ में आई।
ये भी पढ़ें- सपा पूर्व मंत्री व दिग्गज नेता पंडित सिंह का कोरोना से निधन यह थी इसके पीछे की साइंस-दरअसल यह क्रायोजेनिक टैंकर आकार में छोटे थे और जिन टैंकरों में गैस भरी जानी थी वे बड़े थे। आकार बराबर न होने के कारण प्रेशर बराबर का नहीं मिल पा रहा था, जिस कारण ऑक्सीजन अनलोड नहीं हो पा रही थी। इसके लिए छोटे टैंकर, जिनमें आक्सीजन थी, उसका प्रेशर ज्यादा होना चाहिए था। ऐसे में क्रायोजेनिक टैंकरों मतलब छोटो टैंकरों में लगे वेपराइजर को चालू कर उसका प्रेशर बढ़ाया गया और रोड टैंकर का दबाव कम किया गया। प्रेशर का संतुलन जैसी ही ठीक हुआ, वैसे ही ऑक्सीजन गैस को दूसरे टैंकरों में तेजी से भरा गया। युवा इंजीनियर ने आखिरकार क्रायोजेनिक टैंकरों और कैप्सूल से ऑक्सीजन खाली करवाकर समस्या का समाधान कराया।