भगवान श्रीकृष्ण अपनी विभूतियों के संदर्भ में बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।। (श्रीमद्भगवद्गीता – 10.35) इसका अर्थ है, ‘सामों में बृहत्साम मैं हूं। छंदों में गायत्री छंद मैं हूं। मासों में अर्थात् महीनों में मार्ग शीर्ष मास मैं हूं और ऋतुओं में वसंतऋतु मैं हूं।’
– शकोंने हूणोंको पराजित कर विजय प्राप्त की एवं भारतभूमि पर हुए आक्रमण को मिटा दिया – शालिवाहन राजा ने शत्रु पर विजय प्राप्त की और इस दिन से शालिवाहन पंचांग प्रारंभ किया
– इस दिन भगवान श्रीराम ने बाली का वध किया था वर्षारंभ का अतिरिक्त विशेष महत्व
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन अयोध्या में श्रीरामजी का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया। इसके प्रतीकस्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुडी कहते हैं।
भिन्न-भिन्न संस्कृति अथवा उद्देश्य के अनुसार नववर्ष का आरंभ भी विभिन्न तिथियों पर मनाया जाता हैं। उदाहरणार्थ, ईसाई संस्कृति के अनुसार इसवी सन् 01 जनवरी से आरंभ होता है, जबकि हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। आर्थिक वर्ष 01 अप्रैल से आरंभ होता है, शैक्षिक वर्ष जून से आरंभ होता है, जबकि व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। इन सभी वर्षारंभों में से अधिक उचित नववर्ष का आरंभ दिन है, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
ब्रह्मदेव ने इसी दिन ब्रह्मांड की निर्मिति की। उनके नाम से ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ। सत्ययुग में इसी दिन ब्रह्मांड में विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुण से निर्गुण-सगुण स्तर पर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वी पर आया।
ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की, तदूपरांत उसमें कुछ उत्पत्ति एवं परिवर्तन कर उसे अधिक सुंदर अर्थात परिपूर्ण बनाया। इसलिए ब्रह्मदेवद्वारा निर्माण की गई सृष्टि परिपूर्ण हुई, उस दिन गुडी अर्थात धर्मध्वजा खडी कर यह दिन मनाया जाने लगा।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढ़े तीन मुहूर्त होते हैं। इन साढ़े तीन मुहूर्तों की विशेषता यह है कि अन्य दिन शुभकार्य करने के लिए मुहूर्त देखना पड़ता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त ही होता है।
देवीपाटन मंदिर में चैत्र नवरात्रि मेले के लिए गाइडलाइन जारी
नववर्षारंभ कैसे मनाएं ? (ब्रह्मध्वजा खड़ी करना)
– ब्रह्मध्वजा सूर्योदय के उपरांत, तुरंत मुख्य द्वार के बाहर; परंतु देहली (दहलीज) के पास (घर में से देखें तो) दाईं बाजू में भूमि पर पीढा रखकर उसपर खड़ी करें।
– ब्रह्मध्वजा खड़ी करते समय उसकी स्वस्तिक पर स्थापना कर आगे से थोडी झुकी हुई स्थिति में ऊंचाई पर खड़ी करें।
– सूर्यास्त पर गुड़ का नैवेद्य अर्पित कर ब्रह्मध्वज निकालें
– वर्तमान आपातकाल में नववर्षारंभ इस प्रकार मनाएं
इस वर्ष कोरोना की पृष्ठभूमि पर कुछ स्थानों पर यह त्योहार सदैव की भांति करने में मर्यादाएं हो सकती हैं, ऐसे समय में पारंपरिक पद्धति से धर्मध्वजा खड़ी करने हेतु सामग्री नहीं मिल पाई, इस कारण से नववर्ष का आध्यात्मिक लाभ लेने से वंचित न रहें। नववर्ष आगे दिए अनुसार मनाएं–
1. नया बांस उपलब्ध न हो, तो पुराना बांस स्वच्छ कर उसका उपयोग करें। यदि यह भी संभव न हो, तो अन्य कोई भी लाठी गोमूत्र से अथवा विभूति के पानी से शुद्ध कर उपयोग कर सकते हैं।
2. नीम अथवा आम के पत्ते उपलब्ध न हों, तो उनका उपयोग न करें ।
3. अक्षत सर्वसमावेशी होने से नारियल, बीडे के पत्ते, सुपारी, फल आदि उपलब्ध न हों, तो पूजन में उनके उपचारों के समय अक्षत समर्पित कर सकते हैं । फूल भी उपलब्ध न हों, तो अक्षत समर्पित की जा सकती है।
4. नीम के पत्तों का भोग तैयार न कर पाएं तो मीठा पदार्थ, वह भी उपलब्ध न हो पाए, तो गुड अथवा चीनी का भोग लगा सकते हैं ।