इन-कैमरा कार्यवाही के दौरान, पीठ ने राज्य सरकार से पूछा था कि मामले में कुमार पर कार्रवाई के बारे में क्या निर्णय लिया गया। इस पर सरकार ने डीएम का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया। सरकारी वकील ने कहा कि कथित गैंगरेप मामले में एसपी को जांच को सही तरीके से संचालित करने में कमी के कारण निलंबित कर दिया गया था (श्मशान मामले में नहीं)। पीठ ने कहा कि उसने राज्य से पूछा था कि क्या निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए हाथरस में कुमार को बनाए रखना सही है, यह कहते हुए कि राज्य ने अदालत को मामले में जरूरी कदम उठाने का आश्वासन दिया था।
राज्य सरकार के हलफनामे में हाथरस जैसी परिस्थितियों में अंतिम संस्कार के दिशानिर्देशों का मसौदा पेश किया गया। हलफनामों में, डीएम और निलंबित एसपी ने कहा कि रात में पीडि़ता का अंतिम संस्कार करने का निर्णय स्थिति को ध्यान में रखते हुए लिया गया था। शव के दाह संस्कार में केरोसिन का इस्तेमाल नहीं हुआ था। अदालत को बताया गया कि पीडि़ता के पिता के बैंक खाते में मुआवजा राशि स्थानांतरित कर दी गई है। और परिवार को सीआरपीएफ सुरक्षा दे रही है।
अभियुक्त के लिए पेश सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत से अपने आदेशों में कोई भी अवलोकन नहीं करने का अनुरोध किया जो जांच को प्रभावित कर सकता है। इस बीच, पीडि़ता की वकील सीमा कुशवाहा ने ट्रायल को उत्तर प्रदेश से बाहर स्थानांतरित करने की मांग दोहराई।
बंद कमरे में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश हुए पूर्व एसपी हाथरस ने बताया कि पीडि़ता की रात में लाश जलाने का फैसला उनका और डीएम का था। जबकि पिछली पेशी पर डीएम ने कहा था कि लाश जलाने का फैसला उनके साथ आलाधिकारियों का भी था।
एसपी विक्रांत वीर ने बताया कि पीडि़ता का शव और परिजन एक गाड़ी से दिल्ली से हाथरस लाए गए थे। जबकि एडीजी ने पिछली पेशी पर कोर्ट को बताया कि दोनों अलग अलग गाड़ी में थे। अफसरों के इसी विरोधाभासी बयान पर पीडि़ता की वकील ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि अफसर कोर्ट में अलग-अलग थ्योरी दे रहे हैं।
सोमवार को मामले की करीब ढाई घंटे सुनवाई हुई। कोर्ट में गृह विभाग के सचिव तरुण गावा, एडीजी एलओ प्रशांत कुमार, तत्कालीन एसपी विक्रांत वीर मौजूद थे। सरकार की तरफ से तत्कालीन एसपी विक्रांत भीम और डीएम प्रवीण कुमार ने हलफनामा पेश किया। आरोपी पक्ष की तरफ से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा, केंद्र सरकार की तरफ से एडवोकेट एसपी राजू, एडवोकेट जयदीप नारायण माथुर और उत्तर प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता वीके शाही ने बहस की। वहीं पीडि़त पक्ष की तरफ से एडवोकेट सीमा कुशवाहा ने अपना पक्ष रखा।