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Dilip Kumar को इन जंगलों से था खास लगाव, डाले रहते थे डेरा, फिल्म की शूटिंग भी की

Actor Dilip Kumar के जन्मदिन पर विशेष…

खंडवाDec 11, 2019 / 03:06 pm

deepak deewan

Actor Dilip Kumar

Actor Dilip Kumar

खंडवा. अभिनेता दिलीप कुमार का खंडवा से गहरा नाता रहा है। आज भले ही वे व्हीलचेयर पर अपना 97वां जन्मदिन मनाएंगे। पर जिंदादिल अभिनेता जंगल घूमने के लिए अक्सर हरसूद तहसील के सक्तापुर के जंगलों में आते थे। इस दौरान वे कई बार गणेशतलाई और खालवा में रहनेवाले अपने रिश्तेदारों के घर भी रुके। कई शहरवासियों ने उनकी ये यादें आज भी जेहन में संजोए रखी हैं।

50 और 60 के दशक में दिलीप कुमार कई बार खंडवा आए। वे अक्सर ट्रेन से आते थे। एक-दो बार कार से भी आए। आनंद नगर निवासी देवकुमार पटेल बताते हैं कि उन दिनों दिलीप कुमार करियर के शिखर पर थे। उस समय न तो मोबाइल थे न सोशल मीडिया, लेकिन लोगों को न जाने कैसे उनके आने की भनक लग जाती थी। उनकी एक झलक पाने के लिए रेलवे स्टेशन पर सैंकड़ों लोग आ जुटते थे। वे यहां से अक्सर सीधे सक्तापुर के लिए रवाना हो जाते थे। 75 वर्षीय देवकुमार के मुताबिक यहां के घने जंगलों में तब बड़ी संख्या में जंगली जानवर थे, जिनके शिकार के लिए दिलीप कुमार जंगलों में ही डेरा डाल लेते थे। उनके साथ हास्य कलाकार जानी वाकर भी यहां आते थे। वे गणेशतलाई और खालवा में रहनेवाले रिश्तेदारों से भी मिलने जाते थे।

…लेकिन आज मिट गई धरोहर धरोहर
विडंबना यह भी है कि दिलीप कुमार से जुड़ी जिले की धरोहर अब खत्म ही हो गई हैं। सक्तापुर और वहां के घने जंगल अब इंदिरा सागर बांध में डूब चुके हैं। जहां फिल्म की शूटिंग हुई थी वह रेलवे स्टेशन बलवाड़ा और रेलवे लाइन भी अब बंद हो चुकी है। यहां गेज परिवर्तन का काम चल रहा है।

फिल्म गंगा-जमुना की शूटिंग भी यहीं की
खंडवा से दिलीप कुमार का लगाव ऐसा था कि उन्होंने अपनी फिल्म गंगा-जमुना की शूटिंग भी यहीं की। इसके लिए वे सन 1958 और 59 में यहां आए। शहर के चश्मा विक्रेता पंकज शर्मा बताते हैं कि दादा आनंदीलाल शर्मा सनावद और बलवाड़ा में स्टेशन मास्टर थे। दादाजी से दिलीप कुमार की अच्छी दोस्ती हो गई। वे उन्हें युसूफ खान- दिलीप कुमार का असली नाम ही कहते थे। पहली बार जब 1958 में फिल्म गंगा जमुना की शूटिंग के लिए दिलीप कुमार आए तो उनके साथ आई फिल्म की यूनिट ने बलवाड़ा में डेरा डाला था। दिलीप कुमार आनंदीलाल शर्मा के सरकारी क्वार्टर में रहे। स्टेशन पर ही कई अहम दृश्य फिल्माए गए। इतना ही नहीं ट्रेन लूटने का फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण दृश्य भी यहीं फिल्माया। उस समय मीटरगेज ट्रेन पर यह शूटिंग हुई थी। यहीं फिल्म के दो गाने ‘इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चल के… और ‘ढूंढो-ढूंढो रे साजना ढूंढो, मेरे कान का बाला…. फिल्माए गए। 1959 में दिलीप कुमार दोबारा यहां आए और एक महीने तक फिल्म की शूटिंग की।

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