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एक साल बाद लौटी याददाश्त, मां-बेटी के मिलन से नम हुई आंखें, देखें वीडियो

पुलिस बनी देवदूत, माधवनगर के खैबर लाइन का मामला

कटनीJan 19, 2018 / 12:01 pm

balmeek pandey

Unique story of mother-daughter meeting

Unique story of mother-daughter meeting

कटनी. एक साल से बेटी के इंतजार में पथरा गई मां की आंखें उस समय भर आईं जब ग्वालियर से पुलिस की टीम उसे कटनी लेकर पहुंची। एक साल बाद जब गुरुवार को बिछड़ी बेटी से मिली दिव्यांग मां तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बेटी को देखते ही उसकी आंखों से आंखू छलक पड़े। बेटी और मां को मिलवाने में लोगों की जानमाल की रक्षा करने वाली पुलिस ने अहम पहल की और बूढ़ी मां के लिए देवदूत बनी। यह मामला है माधवनगर थाना क्षेत्र अंतर्गत खैबर लाइन निवासी ७३ वर्षीय शीलादेवी डोडानी का। जिसका बेटी के इंतजार में एक दिन एक साल के समान कटता था। शीलादेवी की बेटी लक्ष्मी (४३) कुछ दीमागी हालत ठीक न होने पर फरवरी १७ में अचानक घर से लापता हो गई थी। पिछले एक साल से दिव्यांग (चलने-फिरने में असमर्थ) मां तलाश करती रहीं, लेकिन बेटी का कहीं पता नहीं चला। ५ दिन पहले जब उसे माधवनगर पुलिस से सूचना मिली कि बेटी ग्वालियर में है। यह सुन शीला खुशी से झूम उठी, लेकिन विवशता ऐसी कि वह बेटी से मिलने नहीं जा पा सकी। फिर उसने बेटी को घर लाने पुलिस से गुहार लगाई। एसपी अतुल सिंह ने तत्काल माधवनगर थाना प्रभारी मंजीत सिंह को दो स्टॉफ ग्वालियर भेजने के लिए कहा। मंजीत सिंह ने १६ जनवरी को प्रधान आरक्षक वीजेंद्र तिवारी व आरक्षक जलधारा सिंह को भेजा। गुरुवार को पुलिस बेटी को लेकर घर पहुंची और मां से मिलवाया।

ट्रेन में बैठकर चली गई थी ग्वालियर
शीलादेवी ने बताया कि उसकी बेटी की कुछ मानसिक हालत ठीक नहीं थी। वह ट्रेन में बैठकर कहीं चली गई थी। बताया जा रहा है कि वह कुछ दिन पहले ग्वालियर पहुंच गई थी। जहां पर कुछ लोगों ने उसे मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया था। वहां पर उपचार के दौरान ५ दिन पहले लक्ष्मी की याददाश्त वापस आ गई और उसने अपना पता बताया। हॉस्पिटल प्रबंधन द्वारा कटनी पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस की पहल पर गुरुवार को मां बेटी का मिलन हो सका।

दिन रात पुकारती थी लक्ष्मी-लक्ष्मी
मां ने पत्रिका से चर्चा के दौरान कहा कि जबसे बेटी लक्ष्मी गायब हुई थी वह उसके वियोग में पागल सी हो गई थी। दिर-रात वह लक्ष्मी-लक्ष्मी पुकारती रहती थी। आज पुलिस ने उसकी पीड़ा को समझा और बेटी से मिलाया। लक्ष्मी का कहना था कि वह पढ़ी लिखी नहीं है। जबलपुर लाल मिट्टी जाना जाना था, टेंशन में कहीं और चली गई। मैं बड़ोदरा मौसी के यहां जाना चाह रही थी, लेकिन मुझे पता नहीं कि मैं वहां कब और कैसे पहुंच गई। हमेशा मां की याद आती थी, लेकिन दिमाग काम नहीं कर रहा था।

बेटा भी दिव्यांग
शीला देवी न सिर्फ बेटी के वियोग से परेशान थी बल्कि घर की मालीहालत को लेकर भी जद्दोजहद कर रही है। एक बेटा किशनचंद है वह भी दिव्यांग हैं। ११ साल पहले लंबी बीमारी में पति की मौत के बाद जीवन-यापन के लिए भी उसे परेशान होना पड़ रहा है। कुछ दिनों से हरे माधव परमार्थ सत्संग समिति द्वारा उसे राशन, किराना आदि की सुविधा मुहैया कराई गई है। मां-बेटी के मिलन को जब मोहल्ले के लोगों ने देखा तो सभी की आंखें नम हो गईं।

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