आरएसी भी न होती थी कन्फर्म पहले की व्यवस्था में श्रमशक्ति से लेकर बर्फानी एक्सप्रेस तक, सभी व्यस्त और प्रमुख ट्रेनों में चार्टिंग के बाद थ्री एसी और स्लीपर कोचों की वेटिंग की कौन कहे, आरएसी सीटें तक टीटीई कन्फर्म नहीं करते थे। रेलवे ने जबसे टीटीई को हैंड हेल्ड टर्मिनल मशीनें दी हैं, सबसे अधिक स्लीपर औऱ थ्री एसी कूपे की 10 से 20 नंबर तक की वेटिंग कन्फर्म हो जा रही है।
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अरबों की काली कमाई का खुलासा, एक हफ्ते छापेमारी के बाद 150 करोड़ रुपये किए सरेंडर ऐसे करते थे मनमानी रेलवे काउंटर से जारी आरक्षित वेटिंग टिकट पर कोचों में सफर की छूट होती है। ये व्यवस्था इसलिए बनी है कि टीटीई अपने पास उपलब्ध चार्ट के आधार पर यात्रियों के टिकट चेक करने के बाद कोई यात्री नहीं आए तो उसकी सीट आरएसी और वेटिंग वाले यात्रियों को अलॉट करें। आमतौर पर टीटीई इस नियम का पालन नहीं करते थे और खाली हुई सीट अपनी मर्जी से किसी को भी अलॉट कर देते थे और असली हकदार को इसका पता ही नहीं चलता था।
क्या है नई व्यवस्था नई व्यवस्था में टीटीई के केवल चार्ट पर टिक करने से काम नहीं चलेगा। यात्रियों की उपस्थिति अब एचएचटी में दर्ज होती है। ऐसे में किसी यात्री के न आने पर जो सीट खाली होती है, कंप्यूटर प्राथमिकता के आधार पर वेटिंग टिकटवाले को वह सीट आवंटित कर देता है। दरअसल, एचएचटी की कनेक्टिविटी सीधे रेलवे के रिजर्वेशन सर्वर से होती है और किसी स्टार्टिंग स्टेशन से ट्रेन चलने के दो मिनट पहले तक का अपडेट इस मशीन में हो जाता है। रास्ते में कोई सीट खाली होती है तो उसकी फीडिंग भी हो जाती है। इस बीच, अगर अगले स्टॉपेज पर भी चार्टिंग की व्यवस्था है तो उसकी यथास्थिति भी इसमें आ जाती है। या अगले स्टेशनों से यात्रा से पहले कोई यात्री रिजर्वेशन निरस्त कर देता है तो उसका ब्योरा भी मशीन में आ जाता है। ऐसे में जैसे-जैसे सीटें खाली होती जाती हैं, यात्रियों को अलॉट होती जाती हैं।