scriptइस साल पृथ्वी से टकरा सकता है बेनू स्टेरॉइड, अब 5 दिन बाद होने वाला है ऐसा बड़ा काम | Spacecraft returning to Earth after 7 years with soil from Bennu asteroid | Patrika News
जोधपुर

इस साल पृथ्वी से टकरा सकता है बेनू स्टेरॉइड, अब 5 दिन बाद होने वाला है ऐसा बड़ा काम

पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहे बेनू स्टेरॉइड से मिट्टी के नमूने लेकर पांच दिन बाद नासा का स्पेसक्राफ्ट ओसेरिस-रेक्स धरती पर लौट रहा है।

जोधपुरSep 20, 2023 / 09:48 am

Rakesh Mishra

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गजेंद्र सिंह दहिया, जोधपुर। पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहे बेनू स्टेरॉइड से मिट्टी के नमूने लेकर पांच दिन बाद नासा का स्पेसक्राफ्ट ओसेरिस-रेक्स धरती पर लौट रहा है। भारतीय समयानुसार यह 24 सितम्बर की शाम साढ़े सात बजे अमरीका के ऊटा रेगिस्तान में उतरेगा। बेनू की उम्र 4.5 बिलियन वर्ष है जो पृथ्वी की उम्र के लगभग बराबर है। बेनू के मिट्टी के नमूनों की जांच में पृथ्वी की उत्पति के बारे में कई राज पता चलेंगे। बेनू के वर्ष 2182 में पृथ्वी से टकराने की भी आशंका है। वैज्ञानिक इस आशंका का समाधान करने में भी जुटे हैं। बेनू की मिट्टी जांच करने वाली टीम में जोधपुर के अंतरिक्ष विज्ञान डॉ नरेंद्र भण्डारी भी शामिल है। वे भी अमरीका पहुंच गए हैं।
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27 हजार मील की रफ्तार से केप्सूल छोड़ेगा स्पेसक्राफ्ट
ओसेरिस-रेक्स धरती के नजदीक आने पर फ्रिज आकार का केप्सूल छोड़ेगा, जिसमें मिट्टी के नमूने है। केप्सूल की रफ्तार 27 हजार मील प्रति घंटा होगी। पैराशूट के माध्यम से लैंड होने तक इसकी रफ्तार 10 मील प्रति घंटा करनी होगी। नमूनों में बदलाव नहीं हो, ऐसे में वैज्ञानिकों को लैंडिंग के तुरंत बाद केप्सूल से नमूने लेने की सलाह दी गई है।
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7 साल पहले गया, 3 साल पहले नमूने लिए
नासा ने 2016 में ओसेरिस-रेक्स को बेनू अभियान पर भेजा था। पृथ्वी और बेनू के मध्य दूरी करीब 8 करोड़ किलोमीटर है। स्पेसक्राफ्ट ने 25 अक्टूबर 2020 को टच एण्ड गो तकनीक से बेनू की मिट्टी का नमूना लिया। वापस लौटने में तीन साल का समय लग गया। बेनू पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है। इसका आकार 262.5 मीटर है। मंगल और बृहस्पति ग्रह के मध्य घूमने वाले चट्टानी टुकड़ों को एस्टेरॉइड कहा जाता है। यह करीब 40 हजार एस्टेरॉइड है इसलिए इसे एस्टेरॉइड बेल्ट कहते हैं।

इनका कहना है
स्पेसक्राफ्ट ने बेनू की मिट्टी के नमूने लिए हैं। इसकी जांच में पृथ्वी की चट्टानी संरचना व उत्तपति के बारे में पता चल सकेगा।
डॉ. नरेंद्र भण्डारी, पूर्व वैज्ञानिक, इसरो

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