इस बीमारी में श्वास नली से बलगम बाहर नहीं आ पाता है। बार-बार निमोनिया होता है। सांस फूलती है। फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। अग्नाशय ग्रंथि बंद होने से पाचन क्रिया अनियमित हो जाती है। भारत में इस बीमारी को लेकर जागरूकता नहीं है। अमरीका व यूरोप में यह सामान्य बीमारी है। दवाइयां भी केवल वहीं उपलब्ध हैं। दवाइयां महंगी हैं। हर महीने 15 लाख रुपए खर्च हो जाते हैं। ऐसे मरीज की अधिकतम उम्र 58 साल है, लेकिन भारत में जागरूकता के अभाव व दवाइयां नहीं होने से मरीज 20-30 साल ही जिंदा रहता है।
पसीने की जांच करने वाली मशीन एम्स दिल्ली के डॉ. सुशील काबरा ने तैयार की है, जो एम्स जोधपुर में भी है। इसमें बच्चों के शरीर पर इलेक्ट्रोड लगा पसीना पैदा करते हैं। फिल्टर पेपर में पसीना एकत्र किया जाता है। पसीने में क्लोराइड की मात्रा 60 मिली इक्वीलेंट प्रति लीटर से अधिक है तो उसे सिस्टिक फाइब्रोसिस बीमारी है।